स्वर संधि (अच् संधि)
दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं। स्वर संधि को अच् संधि भी कहते हैं। उदाहरण - हिम+आलय= हिमालय, अत्र + अस्ति = अत्रास्ति, भव्या + आकृतिः = भव्याकृतिः, कदा + अपि = कदापि।संस्कृत में संधियां तीन प्रकार की होती हैं- स्वर संधि, व्यंजन संधि, विसर्ग संधि। इस पृष्ठ पर हम स्वर संधि का अध्ययन करेंगे !
स्वर संधि की परिभाषा
दो स्वरों के आपस में मिलने से जो विकार या परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं, जैसे-देव + इंद्र = देवेंद्र। अर्थात इसमें दो स्वर ‘अ’ और ‘इ’ आस-पास हैं तथा इनके मेल से (अ + इ) ‘ए’ बन जाता है । इस प्रकार दो स्वर-ध्वनियों के मेल से एक अलग स्वर बन गया। इसी विकार को स्वर संधि कहते हैं। स्वर संधि को अच् संधि भी कहते हैं।
स्वर संधि के उदाहरण
कल्प + अंत = कल्पांत
वार्ता + अलाप = वातलिाप
गिरि + इंद्र = गिरींद्र
सती + ईशा = सतीश
भानु + उदय = भानूदय
सिंधु + ऊर्मि = सिधूर्मि
देव + इंद्र = देवेंद्र
चंद्र + उदय = चंद्रोदय
एक + एक = एकैक
परम + औषध = परमौषध
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
वार्ता + अलाप = वातलिाप
गिरि + इंद्र = गिरींद्र
सती + ईशा = सतीश
भानु + उदय = भानूदय
सिंधु + ऊर्मि = सिधूर्मि
देव + इंद्र = देवेंद्र
चंद्र + उदय = चंद्रोदय
एक + एक = एकैक
परम + औषध = परमौषध
प्रति + उपकार = प्रत्युपकार
स्वर संधि के प्रकार (संस्कृत में)
संस्कृत व्याकरण में आठ प्रकार की स्वर संधि का अध्ययन किया जाता है। जबकि हिन्दी व्याकरण में केवल पाँच प्रकार की संधि (दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि) का अध्ययन किया जाता है। संस्कृत व्याकरण की आठ प्रकार की संधि इस प्रकार हैं -- दीर्घ संधि - अक: सवर्णे दीर्घ:
- गुण संधि - आद्गुण:
- वृद्धि संधि - ब्रध्दिरेचि
- यण् संधि - इकोऽयणचि
- अयादि संधि - एचोऽयवायाव:
- पूर्वरूप संधि - एडः पदान्तादति
- पररूप संधि - एडि पररूपम्
- प्रकृति भाव संधि - ईदूद्विवचनम् प्रग्रह्यम्
दीर्घ स्वर संधि
दीर्घ संधि का सूत्र अक: सवर्णे दीर्घ: होता है। यह संधि स्वर संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में स्वर संधियां आठ प्रकार की होती है। दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि, पूर्वरूप संधि, पररूप संधि, प्रकृति भाव संधि। इस पृष्ठ पर हम दीर्घ संधि का अध्ययन करेंगे !दीर्घ संधि के चार नियम होते हैं!
सूत्र- अक: सवर्णे दीर्घ:
अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ, ॠ हो जाते हैं। जैसे -नियम 1. अ/आ + अ/आ = आ
- अ + अ = आ --> धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
- अ + आ = आ --> हिम + आलय = हिमालय
- अ + आ =आ--> पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
- आ + अ = आ --> विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
- आ + आ = आ --> विद्या + आलय = विद्यालय
नियम 2. इ और ई की संधि
- इ + इ = ई --> रवि + इंद्र = रवींद्र ; मुनि + इंद्र = मुनींद्र
- इ + ई = ई --> गिरि + ईश = गिरीश ; मुनि + ईश = मुनीश
- ई + इ = ई --> मही + इंद्र = महींद्र ; नारी + इंदु = नारींदु
- ई + ई = ई --> नदी + ईश = नदीश ; मही + ईश = महीश .
नियम 3. उ और ऊ की संधि
- उ + उ = ऊ --> भानु + उदय = भानूदय ; विधु + उदय = विधूदय
- उ + ऊ = ऊ --> लघु + ऊर्मि = लघूर्मि ; सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
- ऊ + उ = ऊ --> वधू + उत्सव = वधूत्सव ; वधू + उल्लेख = वधूल्लेख
- ऊ + ऊ = ऊ --> भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व ; वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
नियम 4. ऋ और ॠ की संधि
- ऋ + ऋ = ॠ --> पितृ + ऋणम् = पित्रणम्
गुण संधि
गुण संधि का सूत्र आद्गुण: होता है। यह संधि स्वर संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में स्वर संधियां आठ प्रकार की होती है। दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि, पूर्वरूप संधि, पररूप संधि, प्रकृति भाव संधि। इस पृष्ठ पर हम गुण संधि का अध्ययन करेंगे !गुण संधि के चार नियम होते हैं!
अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए; उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधि कहते हैं। जैसे -नियम 1.
- अ + इ = ए ; नर + इंद्र = नरेंद्र
- अ + ई = ए ; नर + ईश= नरेश
- आ + इ = ए ; महा + इंद्र = महेंद्र
- आ + ई = ए ; महा + ईश = महेश
नियम 2.
- अ + उ = ओ ; ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
- आ + उ = ओ ; महा + उत्सव = महोत्सव
- अ + ऊ = ओ ; जल + ऊर्मि = जलोर्मि
- आ + ऊ = ओ ; महा + ऊर्मि = महोर्मि
नियम 3.
- अ + ऋ = अर् ; देव + ऋषि = देवर्षि
नियम 4.
- आ + ऋ = अर् ; महा + ऋषि = महर्षि
वृद्धि संधि
वृद्धि संधि का सूत्र ब्रध्दिरेचि होता है। यह संधि स्वर संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में स्वर संधियां आठ प्रकार की होती है। दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि, पूर्वरूप संधि, पररूप संधि, प्रकृति भाव संधि। इस पृष्ठ पर हम वृद्धि संधि का अध्ययन करेंगे !वृद्धि संधि के दो नियम होते हैं!
अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। जैसे -नियम 1.
- अ + ए = ऐ --> एक + एक = एकैक ;
- अ + ऐ = ऐ --> मत + ऐक्य = मतैक्य
- आ + ए = ऐ --> सदा + एव = सदैव
- आ + ऐ = ऐ --> महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
नियम 2.
- अ + ओ = औ --> वन + औषधि = वनौषधि ;
- आ + ओ = औ --> महा + औषधि = महौषधि ;
- अ + औ = औ --> परम + औषध = परमौषध ;
- आ + औ = औ --> महा + औषध = महौषध
यण् संधि
वृद्धि संधि का सूत्र ब्रध्दिरेचि होता है। यह संधि स्वर संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में स्वर संधियां आठ प्रकार की होती है। दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि, पूर्वरूप संधि, पररूप संधि, प्रकृति भाव संधि। इस पृष्ठ पर हम वयण् संधि का अध्ययन करेंगे !यण् संधि के चार नियम होते हैं!
नियम 1. इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।
- इ + आ = य् --> अति + आचार: = अत्याचार:
- इ + अ = य् + अ --> यदि + अपि = यद्यपि
- ई + आ = य् + आ --> इति + आदि = इत्यादि।
- ई + अ = य् + अ --> नदी + अर्पण = नद्यर्पण
- ई + आ = य् + आ --> देवी + आगमन = देव्यागमन
नियम 2. उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।
- उ + आ = व् --> सु + आगतम् = स्वागतम्
- उ + अ = व् + अ --> अनु + अय = अन्वय
- उ + आ = व् + आ --> सु + आगत = स्वागत
- उ + ए = व् + ए --> अनु + एषण = अन्वेषण
नियम 3. ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।
- ऋ + अ = र् + आ --> पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा
नियम 4. ‘ल्र’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘ल्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।
- ल्र + आ = ल् --> ल्र + आक्रति = लाक्रति
अयादि संधि
वृद्धि संधि का सूत्र ब्रध्दिरेचि होता है। यह संधि स्वर संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में स्वर संधियां आठ प्रकार की होती है। दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि, पूर्वरूप संधि, पररूप संधि, प्रकृति भाव संधि। इस पृष्ठ पर हम अयादि संधि का अध्ययन करेंगे !
अयादि संधि के चार नियम होते हैं!
ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं।
नियम 1.
- ए + अ = अय् + अ --> ने + अन = नयन
नियम 2.
- ऐ + अ = आय् + अ --> गै + अक = गायक
नियम 3.
- ओ + अ = अव् + अ --> पो + अन = पवन
नियम 4.
- औ + अ = आव् + अ --> पौ + अक = पावक
- औ + इ = आव् + इ --> नौ + इक = नाविक
पूर्वरूप संधि
वृद्धि संधि का सूत्र ब्रध्दिरेचि होता है। यह संधि स्वर संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में स्वर संधियां आठ प्रकार की होती है। दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि, पूर्वरूप संधि, पररूप संधि, प्रकृति भाव संधि। इस पृष्ठ पर हम पूर्वरूप संधि का अध्ययन करेंगे !
पूर्वरूप संधि के नियम
नियम - पदांत में अगर "ए" अथवा "ओ" हो और उसके परे 'अकार' हो तो उस अकार का लोप हो जाता है। लोप होने पर अकार का जो चिन्ह रहता है उसे ( ऽ ) 'लुप्ताकार' या 'अवग्रह' कहते हैं।
पूर्वरूप् संधि के उदाहरन्
- ए / ओ + अकार = ऽ --> कवे + अवेहि = कवेऽवेहि
- ए / ओ + अकार = ऽ --> प्रभो + अनुग्रहण = प्रभोऽनुग्रहण
- ए / ओ + अकार = ऽ --> लोको + अयम् = लोकोSयम्
- ए / ओ + अकार = ऽ --> हरे + अत्र = हरेSत्र
यह संधि आयदि संधि का अपवाद भी होती है।
पररूप संधि
वृद्धि संधि का सूत्र ब्रध्दिरेचि होता है। यह संधि स्वर संधि के भागो में से एक है। संस्कृत में स्वर संधियां आठ प्रकार की होती है। दीर्घ संधि, गुण संधि, वृद्धि संधि, यण् संधि, अयादि संधि, पूर्वरूप संधि, पररूप संधि, प्रकृति भाव संधि। इस पृष्ठ पर हम पररूप संधि का अध्ययन करेंगे !पररूप संधि के नियम
नियम - पदांत में अगर "अ" अथवा "आ" हो और उसके परे 'एकार/ओकार' हो तो उस उपसर्ग के एकार/ओकार का लोप हो जाता है। लोप होने पर अकार/ओकार 'ए/ओ' उपसर्ग में मिल जाता है।
पररूप संधि के उदाहरन्
- प्र + एजते = प्रेजते
- उप + एषते = उपेषते
- परा + ओहति = परोहति
- प्र + ओषति = प्रोषति
- उप + एहि = उपेहि
यह संधि वृद्धि संधि का अपवाद भी होती है।