कारक प्रकरण
किसी न किसी रूप में क्रिया के सम्पादक तत्त्व को ‘कारक' कहा जाता है। यही कारण है कि प्रत्येक कारक का क्रिया के साथ प्रत्यक्ष संबंध अवश्य रहता है।"करोति निर्वर्तयति क्रियाम् इति कारकम् ।"
"क्रियान्वयित्वम् कारकम् ।।"
"क्रियान्वयित्वम् कारकम् ।।"
कारक के निम्न उदाहरण देखें
- बालकः पठति। लड़का पढ़ता है।
- बालकः पुस्तकं पठति। लड़का किताब पढ़ता है।
- बालकः मनसा पुस्तकं पठति। लड़का मन से किताव पढ़ता है।
- बालकः मनसा ज्ञानाय पुस्तकं पठति। लड़का मन से ज्ञान के लिए पुस्तक पढ़ता
- बालकः मनसा ज्ञानाय आचार्यात् पुस्तकं पठति। लड़का मन से ज्ञान के लिए आचार्य से पुस्तक पढ़ता है।
- बालकः विद्यालये आचार्यात् ज्ञानाय मनसा पुस्तकं पठति। लड़का विद्यालय में आचार्य से ज्ञान के लिए मन से किताब पढ़ता है।
# | प्रश्न | उत्तर | संस्कृत |
---|---|---|---|
1. | कौन पढ़ता है ? | लड़का | बालकः |
2. | क्या पढ़ता है ? | किताब | पुस्तकम् |
3. | कैसे पढ़ता है ? | मन से | मनसा |
4. | किसलिए पढ़ता है ? | ज्ञान के लिए | ज्ञानाय |
5. | किससे पढ़ता है ? | आचार्य से | आचार्यात् |
6. | कहाँ पढ़ता है? | विद्यालय में | विद्यालये |
- बालकः मित्रस्य गृहं गच्छति। लड़का मित्र के घर जाता है।
- हे बालकः ! त्वं मित्रस्य गृहं गच्छसि । हे बालक ! तुम मित्र के घर जाते हो।
# | प्रश्न | उत्तर | संस्कृत |
---|---|---|---|
1. | किसके घर ? | मित्र के | मित्रस्य |
2. | कौन जाता है ? | बालक | बालकः |
"कर्ता कर्म करणं च सम्प्रदानं तथैव च,
अपादानाधिकरणे इत्याहुः कारकाणि षट्।"
संबंध कारक और संबोधन कारक हिन्दी भाषा में हुआ करते हैं। संस्कृत में विभक्तियों के लिए संबंध को रखा गया है। संबोधन तो कर्ता का ही होता है। इस प्रकार कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण ये छह कारक और संबंध जोड़कर सात विभक्तियाँ होती हैं। English में मात्र तीन ही Case होते हैं-अपादानाधिकरणे इत्याहुः कारकाणि षट्।"
- Nominative case - कर्ता कारक
- Objective case - कर्म कारक और
- Possessive case - संबंध कारक ।।
'संख्याकारकबोधयित्री विभक्तिः'
कारक
कारक की परिभाषा. संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम का) सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) 'कारक' कहते हैं।अथवा
कारक का अर्थ होता है किसी कार्य को करने वाला। यानी जो भी क्रिया को करने में भूमिका निभाता है, वह कारक कहलाता है। कारक के उदाहरण : वह रोज़ सुबह गंगा किनारे जाता है। वह पहाड़ों के बीच में है। नरेश खाना खाता है।
विभक्ति
कारक की विशेष अवस्था को और उसकी संख्या को बतलाने वाली सत्ता ही 'विभक्ति' कहलाती है। पदों में लगी विभक्तियाँ ही उनका भिन्न-भिन्न कारक होना और उनकी भिन्न-भिन्न संख्याएँ बतलाती हैं।अथवा
विभक्ति का शाब्दिक अर्थ है - ' विभक्त होने की क्रिया या भाव' या 'विभाग' या 'बाँट'। व्याकरण में शब्द (संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण) के आगे लगा हुआ वह प्रत्यय या चिह्न विभक्ति कहलाता है जिससे पता लगता है कि उस शब्द का क्रियापद से क्या संबंध है। विभक्तियाँ सात होती हैं।
कारक/विभक्ति तालिका
# | विभक्ति/कारक | विवरण | सूत्र |
---|---|---|---|
1. | कर्त्तरि प्रथमा | कर्ता में प्रथमा विभक्ति | स्वतंत्र कर्त्ता |
2. | कर्मणि द्वितीया | कर्म में द्वितीया विभक्ति | कर्तुरीप्सिततम् कर्मः |
3. | करणे तृतीया | करण में तृतीय विभक्ति | साधकतम् करणम् |
4. | सम्प्रदाने चतुर्थी | सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति | कमर्णा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम् |
5. | अपादाने पंचमी | अपादान में पंचमी विभक्ति | ध्रुवमपायेऽपादानम् |
6. | सम्बन्धे षष्ठी | संबंध में षष्ठी विभक्ति और | षष्ठीशेशे |
7. | अधिकरणे सप्तमी | अधिकरण में सप्तमी विभक्ति | आधारोधिकरणम् |
कर्त्ता कारक
कर्त्ता के जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह कर्त्ता कारक कहलाता है। इसका विभक्ति का चिह्न ने है। इस ने चिह्न का वर्तमानकाल और भविष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है। इसका सकर्मक धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है।उदाहरण
- राम ने रावण को मारा।
- लड़की स्कूल जाती है।
- भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ने परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं लगता है। जैसे-वह हँसा।
- वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-वह फल खाता है।, वह फल खाएगा।
- कभी-कभी कर्ता के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रयोग भी किया जाता है। जैसे- बालक को सो जाना चाहिए।, सीता से पुस्तक पढ़ी गई।, रोगी से चला भी नहीं जाता।, उससे शब्द लिखा नहीं गया।
कर्त्ता कारक, प्रथमा विभक्ति - संस्कृत
- कर्त्ता कारक, प्रथमा विभक्ति का सूत्र - स्वतंत्र कर्त्ता
1. प्रातिपदिकार्थलिङ्गपरिमाणवचनमात्रे प्रथमा
प्रातिपदिकार्थ मात्र में एवं उसकी अपेक्षा लिंग, परिमाण एवं वचन मात्र के आधिक्य में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे-वृक्षः, नदी, लता, फलम् , रामः पठति, आदि।2. क्रिया सम्पादकः कर्त्ता
जो क्रिया का सम्पादन करे वह कर्त्ता कारक होता है। जैसे प्रवरः पठति। इस वाक्य में पठति क्रिया का सम्पादन 'प्रवर' करता। है। अतएव ‘प्रवर' कर्ता कारक में आया ।3. कर्त्तरि प्रथमा
कर्ता कारक में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे—प्रवरः पठति में | ‘प्रवर' में प्रथमा विभक्ति लगने के कारण ‘प्रवरः' बना।।4. अभिधेयमात्रे प्रथमा
यदि केवल नाम व्यक्त करना हो तो उसमें प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे- बालकः, गजः, देवः, कृष्णः, रामः आदि ।5. अव्यययोगे प्रथमा
अव्यय शब्दों के योग में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे भरतः इति राजा आसीत् ।6. सम्बोधने च प्रथमा
हिन्दी के संबोधन कारक में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे - हे प्रखर ! अत्र आगच्छ।7. प्रयोजक कर्त्तरि प्रथमा
प्रयोजक कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे—शिक्षकः। छात्रं पर्यावरणं दर्शयति।8. उक्ते कर्मणि प्रथमा
कर्मवाच्य में (Passive voice) कर्म कारक में प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे—मया छात्रः दृश्यते।कर्म कारक द्वितीया विभक्ति - संस्कृत
1. कर्तुरीप्सिततमं कर्म
कर्ता की अत्यन्त इच्छा जिस कार्य को करने में लगे उसे। कर्म कारक कहते हैं। जैसे-- रमेशः संस्कृतं पठति । रमेश संस्कृत पढ़ता है।
- अयं बालः ओदनं भुङ्क्ते। यह बालक चावल खाता है।
2. कर्मणि द्वितीया
कर्म कारक में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-- अंशु फलं खादति । अंशु फल खाती है ।
3. अभितः परितः, सर्वतः उभयतः योगे द्वितीया
अभितः (दोनों ओर), परितः (चारों ओर), सर्वतः (सब ओर) और उभयतः (दोनों ओर) के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे—- ग्रामं परितः वृक्षाः सन्ति । गाँव के चारों ओर वृक्ष हैं।
- विद्यालयम् अमितः पर्वताः सन्ति । विद्यालय के दोनों ओर पहाड़ हैं।
- मम् गृहं उभयतः वृक्षौ स्तः । मेरे घर के दोनों ओर दो वृक्ष हैं।
4. प्रत्यनुधिङनिकषान्तरान्तरेणयावद्भिः
प्रति (ओर), अनु (पीछे), धिक् (धिक्कार), निकषा (निकट), अन्तरा (बीच में), अन्तरेण (बिना), यावत् (तक) आदि शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-- दीन प्रति दयां कुरु । दीनों (गरीबों) पर दया करो।
- रामम् अनुगतः लक्ष्मणः । राम के पीछे लक्ष्मण गया।
- धिक् पापिनं जनम् । पापीजन को धिक्कार है।
- बी.पी.एस. विद्यालयं निकषा क्रीडाक्षेत्रं वर्तते । बी.पी.एस. विद्यालय के निकट खेल का मैदान है।
- त्वां मां च अन्तरा कोऽस्ति ? तुम्हारे और मेरे बीच कौन है?
- अध्ययनम् अन्तरेण ज्ञानं न भवति । अध्ययन के बिना ज्ञान नहीं होता है ।
- नगरं यावत् पर्वताः सन्ति । नगर तक पहाड़ हैं।
5. अधिशीड्स्थासां कर्म
‘अधि’ उपसर्ग के रहने पर शी, स्था और आस् के योग में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-- रणधीरः शय्याम् अधिशेते। रणधीर शय्या पर सोता है।
- विश्वजीतः गृहम् अधितिष्ठति । राजा प्रासादम् अध्यास्ते।
6. उपान्चध्यावसः
उप, अनु, अधि और आ उपसर्ग के बाद यदि वसु धातु आया। तो सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-- सः वनम् उपवसति । वह वन में रहता है।
- हरि बैकुण्ठम् अनुवसति । अधिवसति/आवसति/विष्णु बैकुण्ठ में रहते हैं।
7. क्रुधुद्रुहोरुपसृष्टयोः
कर्म ‘क्रध्’ और ‘दुह' क्रियाएँ उपसर्ग युक्त हों तो द्वितीया और उपसर्ग-रहित हों तो चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-- प्रभुः भृत्यम् अभिक्रुध्यति । (उपसर्ग-युक्त),
- प्रभुः भृत्याय क्रुध्यति । (उपसर्ग-रहित)
8. क्रियाविशेषणे द्वितीया
क्रियाविशेषण में द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे-- सः मधुरं गायति । वह मधुर गाता है।
- मेघाः मन्दं मन्दं गर्जन्ति । मेघ धीरे-धीरे गरजते हैं।
- मन्द-मन्दं वहति पवनः । हवा धीरे-धीरे बहती है।
9. कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे द्वितीया
कालवाची और मार्गवाची शब्दों में यदि क्रिया का अतिशय लगाव या व्याप्ति हो तो द्वितीया विभक्ति होती है। जैसे -- क्रोशं कुटिला नदी । एक कोस तक नदी टेढ़ी है।
- मासम् व्याकरणम् अपठत् । एक मास में व्याकरण पढ़ा।
करण कारक
जिसकी सहायता से कोई कार्य किया जाए, उसे करण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न ‘से’ के ‘द्वारा’ है। अथवा - वह साधन जिससे क्रिया होती है, वह करण कहलाता है। अर्थात, जिसकी सहायता से किसी काम को अंजाम दिया जाता वह करण कारक कहलाता है। जैसे – वह कलम से लिखता है।उदाहरण
- अर्जुन ने जयद्रथ को बाण से मारा। - इस वाक्य में कर्ता अर्जुन ने मारने का कार्य ‘बाण’ से किया। अतः ‘बाण से’ करण कारक है।
- बालक गेंद से खेल रहे है। - इस वाक्य में कर्ता बालक खेलने का कार्य ‘गेंद से’ कर रहे हैं। अतः ‘गेंद से’ करण कारक है।
करण कारक, तृतीया विभक्ति - संस्कृत
1. साधकतमम् करणम्
क्रिया सम्पादन करने में जो साधन का काम करे वह करण कारक होता है। जैसे- सः कलमेन लिखति । वह कलम से लिखता है।
2. करणे तृतीया
करण कारक में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे -- रामः वाणेन रावण हतवान् । राम ने बाण से रावण को मारा।
3. अनुक्ते कर्त्तरि तृतीया
कर्मवाच्य एवं भाववाच्य में कर्ता अनुक्त (अप्रधान) रहता है। इस कारण से उसमें तृतीया विभक्ति होती है। जैसे -- रामेण रावणः हतः। राम से रावण मारा गया।
- विप्रेण वेदः पठयते । विप्र से वेद पढ़ा जाता है।
- मया हस्यते । मुझसे हँसा जाता है।
4. सहार्थे तृतीया
सह, साकम्, सार्धम्, समम् (साथ अर्थ में) आदि शब्दों के प्रयोग होने पर तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-- रामेण सह सीता गता। राम के साथ सीता गई।
- पुत्रेण सह आगतः पिता । पुत्र के साथ पिता आया।
- छात्रेण समं गतः गुरुः । गुरु छात्र के साथ गया।
- त्वं मया साकं तिष्ठ। तुम मेरे साथ ठहरो। अपवर्ग तृतीया कार्य
5. अपवर्गे तृतीया
कार्य समाप्ति या फल प्राप्ति को 'अपवर्ग' कहा जाता है। इस अर्थ में कालवाची एवं मार्गवाची शब्दों में ततीया विभक्ति होती है। जैसे-- मासेन व्याकरणम् अधीतम् । एकमाह में व्याकरण पढ़ लिया।
- सः क्रोशेन कथाम् अकथयत् । उसने एक कोस जाते-जाते कहानी कही।
- अयं चतुर्भिः वर्षेः गृहं विनिर्मितवान्। इसने चार वर्षों में घर बना लिया ।।
6. प्रकृत्यादिभ्यश्च उपसंख्यानम्
प्रकृति आदि वाचक शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे -- सः प्रकृत्या सरलः । वह प्रकृति से सरल है।
- प्रवरः वेगेन धावति । प्रवर वेग से दौड़ता है।
7. येनाङ्गविकारः
अंगी के जिस अंग में कोई विकार हो, उसमें तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-- सः अक्ष्णा काणः अस्ति। वह आँख से काना है।
- मुकेशः पादेन खञ्जः अस्ति । मुकेश पैर से लँगड़ा है।
- कर्णन वधिरः अस्ति रामनिवासः । रामनिवास कान से बहरा है।।
8. ऊनवारणप्रयोजनार्थेषु तृतीया
ऊनवाचक (हीन, रहित), वारणार्थक (अलम्, कृतम्, किम् आदि से निषेध किया जाय) और प्रयोजनार्थी शब्दों में योग में तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-- सः धनेन हीनः अस्ति । वह धन से हीन है।
- अलम् विवादेन । विवाद व्यर्थ है।
- एकेन ऊनम् । एक कम।
- गर्वेण शून्यः । गर्व से शून्य।
9. पृथग्विनानानाभिस्तृतीयाऽन्यतरस्याम्
पृथक्, बिना, नाना आदि शब्दों के योग में विकल्प से तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-- प्रवरेण विना नावकोठी शून्या अस्ति । प्रवर के बिना नावकोठी सूनी है।
10. हैती तृतीया पञ्चमी च
हेतु अर्थात् कारण के अर्थ में तृतीया और पञ्चमी दोनों विभक्तियाँ होती हैं। जैसे—- दण्डेन घटः भवति । दण्ड से घड़ा बनता है।
- श्रमेण धनं मिलति । श्रम से धन मिलता है।
- पुण्येन सुखं मिलति । पुण्य से सुख मिलता है।
11. इत्थंभूतलक्षणे वा उपलक्षणे तृतीया
किसी की पहचान के अर्थ में जो शब्द प्रयुक्त होते हैं, उनमें तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-- सः जटाभिस्तापसः अस्ति। वह जटा से तपस्वी लगता है।
- रामानुजः वस्त्रेण सज्जनः । रामनुज वस्त्र से सज्जन है।
- सः पुस्तकेन छात्रः प्रतीयते । वह पुस्तक से छात्र लगता है।
12. सहयुक्ते प्रधाने तृतीया
किसी के साथ जाने के अर्थ में जो शब्द प्रयुक्त होते हैं, उनमें तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-- सीता रामेण सह वनं अगच्छत् ।
- श्यामः बालकेन सार्धम् क्रीडति ।
13. तुल्यार्थे तुलोपमाम्यां तृतीया
किसी के साथ तुलना किये जाने के अर्थ में जो शब्द प्रयुक्त होते हैं, उनमें तृतीया विभक्ति होती है। जैसे-- बालक पित्रा समम् अस्ति ।
- सीतायाः मुखं चंद्रेण तुल्यम् अस्ति ।
सम्प्रदान कारक
जिसके लिए कोई कार्य किया जाए, उसे संप्रदान कारक कहते हैं। अथवा - कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं। लेने वाले को संप्रदान कारक कहते हैं। इसका विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ हैं।अथवा - सम्प्रदान का अर्थ देना होता है। जब वाक्य में किसी को कुछ दिया जाए या किसी के लिए कुछ किया जाए तो वहां पर सम्प्रदान कारक होता है। सम्प्रदान कारक के विभक्ति चिन्ह के लिए या को हैं।
उदाहरण
- मैं दिनेश के लिए चाय बना रहा हूँ। - इस वाक्य में ‘दिनेश’ संप्रदान है, क्योंकि चाय बनाने का काम दिनेश के लिए किया जा रहा।
- स्वास्थ्य को (लिए सूर्य) नमस्कार करो। - इस वाक्य में ‘स्वास्थ्य के लिए’ संप्रदान कारक हैं।
- गुरुजी को (लिए सूर्य) फल दो। - इस वाक्य में ‘गुरुजी को’ संप्रदान कारक हैं।
सम्प्रदान कारक, चतुर्थी विभक्ति - संस्कृत
1. सम्प्रदाने चतुर्थी
सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-- नूतन ब्राह्मणाय भोजनं पचति । नुतन ब्राह्मण के लिए भोजन पकाती है।
2. दानार्थे चतुर्थी
जिसे कोई चीज दान में दी जाय, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-- राजा ब्राह्मणेभ्यः वस्त्रम् ददाति । राजा ब्राह्मणों को वस्त्र देता है।
3. तुमर्थात्य भाववचनात् चतुर्थी
तुमुन् प्रत्ययान्त शब्दों के रहने पर चतुर्थी विभ होती है। जैसे—- फलेभ्यः उद्यानं गच्छति संजयः । फलों के लिए उद्यान जाता संजय । ।
- भोजनाय गच्छति बालकः । भोजन के लिए जाता बालक।
4. नमः स्वस्ति स्वाहास्वधाऽलं वषट्योगाच्च
नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम। और वषट् के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-- तस्मै श्रीगुरवे नमः। उन गुरु को नमस्कार है।
- अस्तु स्वस्ति प्रजाभ्यः । प्रजा का कल्याण हो ।
- अग्नये स्वाहा। आग को समर्पित है।
- पितृभ्यः स्वधा । पितरों को समर्पित है।
- अलं मल्लो मल्लाय। यह पहलवान उस पहलवान के लिए काफी है।
- वषड् इन्द्राय । इन्द्र को अर्पित है।
5. रुच्यर्थानां प्रीयमाणः
जिस व्यक्ति को जो चीज अच्छी लगती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-- सर्वेभ्यः रोचते श्लाघा । सबों को श्लाघा अच्छी लगती है।
- ब्राह्मणाय मधुरं प्रियम् । ब्राह्मण को मधुर प्रिय है।
- मह्यं संस्कृतं रोचते। मुझे संस्कृत अच्छी लगती है।
6. स्पृहेरीप्सितः चतुर्थी
स्पृह (इच्छा) धातु के योग में जिस चीज की इच्छा होती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-- बालः पुष्पेभ्यः स्पृहयति । बच्चा फूलों को पसंद करता है।
- ज्ञानाय स्पृह्यति ज्ञानी। ज्ञानी ज्ञान पसंद करता है।
7. धारेरुत्तमर्णः चतुर्थी
‘धारि' धातु के अर्थ में उत्तमर्ण (कर्जदार) में चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे—- अवधेशः मह्यं शतं धारयति। अवधेश मेरा सौ रुपयों का कर्जदार है।
8. क्रुधदुहेसूयार्थानां यं प्रति कोपः
क्रुध, द्रुह, ईष्र्या और असूयार्थ वाले धातुओं के योग में जिसके प्रति क्रोधादि भाव हो, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-- कंसः कृष्णाय क्रुध्यति। कंस कृष्ण पर क्रोध करता है ।।
- दुष्टः सज्जनाय द्रुह्यति। दुष्ट सज्जन से द्रोह करता है।
- प्रणयः अरविन्दाय ईष्यति। प्रणय अरविन्द से ईष्र्या करता है।
- रामकुमारः गौरीशंकराय असूयति। रामकुमार गौरीशंकर से द्वेष करता है।
9. कर्मणा यमभिप्रैति स सम्प्रदानम्
जहां कर्म के योग में जिस चीज की इच्छा होती है, उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-
प्रवरः सर्पात, विभेति । प्रवर साँप से डरता है।
- राजा याचकाय वस्त्रं ददाति।
- सः बालकाय फ़लम् ददाति।
अपादान कारक
कर्त्ता अपनी क्रिया द्वारा जिससे अलग होता है, उसे अपादान कारक कहते हैं। अथवा- संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘से’ है। 'से' चिन्ह करण कारक का भी होता है लेकिन वहां इसका मतलब साधन से होता है। अपादान कारक में से का मतलब किसी चीज़ से अलग होना दिखाने के लिए प्रयुक्त होता है।उदाहरण
- पेड़ से आम गिरा। - इस वाक्य में ‘पेड़’ अपादान है, क्योंकि आम पेड़ से गिरा अर्थात अलग हुआ है।
- बच्चा छत से गिर पड़ा। - इस वाक्य में ‘छत से’ गिरने में अलग होना प्रकट होता है। अतः छत से अपादान कारक हैं।
- संगीता घर से चल पड़ी। - इस वाक्य में घर ‘से’ गिरने में अलग होना प्रकट होता है। अतः घर से अपादान कारक हैं।
अपादान कारक, पंचमी विभक्ति - संस्कृत
1. अपादाने पञ्चमी
अपादान कारक में पंचमी विभक्ति होती है। जैसे-- वृक्षात् पत्राणि पतन्ति । वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।
- संजीवः ग्रामात् आगच्छति । संजीव गाँव से आता है।
2. भीत्रार्थानां भयहेतुः
'भी' और 'त्रा' धातु के योग में जिसमें भय हो या रक्षा की जाय उसमें पंचमी विभक्ति होती है। जैसे-प्रवरः सर्पात, विभेति । प्रवर साँप से डरता है।
- अयं चौरा त्रायते । यह चोर से बचाता है।
3. जुगुप्साविरामप्रमादार्थानाम्
जिससे जुगुप्सा (घणा) हो या जिससे विराम हो और। जिसमें प्रमाद (भूल) हो, उसमें पंचमी विभक्ति होती है। जैसे—- सा पापात् जुगुप्सते । वह पाप से घृणा करती है।
4. ल्यब्लोपे पञ्चमी
ल्यपू-प्रत्ययान्त शब्द यदि वाक्य में छिपा हो तो कर्म या अधिकरण कारक में पंचमी विभक्ति होती है। जैसे-- सः प्रासादात् पश्यति । वह प्रासाद से देखता है। यानी वह प्रासाद (महल) पर चढ़कर देखता है।
- श्वशुरात् जिहेति वधूः । ससुर से वधू लजाती है।
- आसनात् पश्यति । आसन से देखते हैं।
5. आख्यातोपयोगे पंचमी
जिससे नियमपूर्वक कुछ सीखा जाय, उसमें पंचमी विभक्ति होती है। जैसे-- सः आचार्यात् संस्कृतम् अधीते । वह आचार्य से संस्कृत पढ़ता है।
6. भुवः प्रभवश्च
‘भू' धातु के योग में जहाँ से कोई चीज निकलती या उत्पन्न होती हो, उसमें पंचमी विभक्ति होती है। जैसे-- गङ्गा हिमालयात् प्रभवति । गंगा हिमालय से निकलती है।
- बिलात सर्पः प्रभवति । साँप बिल से निकलता है।
7. बहिर्योग पञ्चमी
बहिः (बाहर) के योग में पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे-- ग्रामात् बहिः सरः वर्तते । गाँव से बाहर तालाब है।
- नगरात् बहिः मन्दिरं वर्तते । नगर के बाहर मन्दिर है।
8. आमर्यादाभिविध्योः
तेन बिना, मर्यादा, व्याप्ति इन अर्थों में 'आ' उपसर्ग के योग में पंचमी विभक्ति होती है। जैसे—- सः आग्रमात् गच्छति। वह गाँव तक जाता है।
- आकैलासात् राजहंसाः सहायाः । कैलाश तक राजहंस सहायक होंगे।
9. अपेक्षार्थे पञ्चमी
तुलना में जिससे श्रेष्ठ बताया जाय उसमें पंचमी विभक्ति होती है। जैसे-- धनात् विद्या गरीयसी। धन से विद्या महान् है।
- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी । माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
संबंध कारक
शब्द के जिस रूप से एक का दूसरे से संबंध पता चले, उसे संबंध कारक कहते हैं। अथवा - संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप की वजह से एक वस्तु की दूसरी वस्तु से संबंध का पता चले उसे संबंध कारक कहते हैं। इसके विभक्ति चिन्ह का, के, की, रा, रे, री आदि होते हैं। इसकी विभक्तियाँ संज्ञा, लिंग, वचन के अनुसार बदल जाती हैं। जैसे - सीतापुर मोहन का गाँव है।उदाहरण
- यह राहुल की किताब है। - इस वाक्य में ‘राहुल की’ संबंध कारक है, क्योंकि यह राहुल का किताब से संबंध बता रहा है।
- यह राधेश्याम का बेटा है। - इस वाक्य में ‘राधेश्याम का बेटे’ से संबंध प्रकट हो रहा है। अतः यहाँ संबंध कारक है।
- यह कमला की गाय है। - इस वाक्य में ‘कमला का गाय’ से संबंध प्रकट हो रहा है। अतः यहाँ संबंध कारक है।
संबंध कारक, षष्ठी विभक्ति - संस्कृत
1. सम्बन्धे षष्ठी
सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे-- मम पुत्रः प्रवरः । मेरा पुत्र प्रवर ।
- इदं रामस्य गृहम् अस्ति । यह राम का घर है।
2. कर्तृकर्मणो कृति
कृत्-प्रत्ययान्त (क्तिन्/अन्/तृच्) शब्दों में कर्त्ता और कर्म में में षष्ठी विभक्ति होती है। जैसे-- इयं कालिदासस्य कृतिरस्ति। यह कालिदास की कृति है।
- बालानां रोदनं बलम् । बच्चों का रोना ही बल है।
3. हेतुवाचकः
जब ‘हेतु, कारण, निमित्त, प्रयोजन' शब्द का प्रयोग होता है तब जो शब्द का प्रयोजन रहता है, 'वह' और 'हेतु, कारण, निमित्त, प्रयोजन' दोनों शब्दों में षष्ठी विभक्ति होती हैं । जैसे-- स अल्पस्य हेतोः बहु त्यजति । वह थोड़े के लिए बहुत का त्याग करता है।
- श्यामः अत्र कस्य हेतोः/करणस्य/प्रयोजनस्य वसति।
4. षष्ठीचानादरो
अनादर के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती हैं । जैसे-
- सः मम् निवारयतः अपि अगच्छत् ।
- रुदतः शिशोः माता वहि आगच्छत् ।
5. दूरान्तिकार्थेः षष्ठ्यन्तरस्याम्
दूर और आन्तिक निकट अर्थ वाली धातुओ में षष्ठी विभक्ति होती हैं । जैसे-
- विद्यालयः ग्रामस्य दूरम् अस्ति ।
- ग्रहस्य निकटं पत्रालयः अस्ति ।
6. तुल्यसदृशयोगे षष्ठी
तुल्य और सदृश के योग में षष्ठी विभक्ति एवं तृतीया विभक्ति (दोनों) होती हैं । जैसे-
- विद्यालयः ग्रामस्य दूरम् अस्ति ।
- ग्रहस्य निकटं पत्रालयः अस्ति ।
7. षष्ठीशेषे षष्ठी
शेष में षष्ठी विभक्ति होती हैं । जैसे-
अधिकरण कारक में अधिकरण का अर्थ होता है- आधार या आश्रय संज्ञा का वह रूप जिससे क्रिया के आधार का बोध हो उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति चिह्न में और पर होती है। भीतर, अंदर, ऊपर, बीच आदि शब्दों का प्रयोग इस कारक में किया जाता है। कहीं कहीं पर विभक्तियों का लोप होता है तो उनकी जगह पर किनारे, आसरे, दीनों, यहाँ, वहाँ, समय आदि पदों का प्रयोग किया जाता है। कभी कभी में के अर्थ में पर और पर के अर्थ में में लगा दिया जाता है।
- रामस्य पुस्तकं कुत्र अस्ति।
- बालकस्य पिता आगच्छति।
अधिकरण कारक
जिस शब्द से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। अथवा - शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसके विभक्ति-चिह्न ‘में’, ‘पर’ हैं।अधिकरण कारक में अधिकरण का अर्थ होता है- आधार या आश्रय संज्ञा का वह रूप जिससे क्रिया के आधार का बोध हो उसे अधिकरण कारक कहते हैं। इसकी विभक्ति चिह्न में और पर होती है। भीतर, अंदर, ऊपर, बीच आदि शब्दों का प्रयोग इस कारक में किया जाता है। कहीं कहीं पर विभक्तियों का लोप होता है तो उनकी जगह पर किनारे, आसरे, दीनों, यहाँ, वहाँ, समय आदि पदों का प्रयोग किया जाता है। कभी कभी में के अर्थ में पर और पर के अर्थ में में लगा दिया जाता है।
उदाहरण
- पानी में मछली रहती है। - इस वाक्य में ‘पानी में’ अधिकरण कारक है, क्योंकि यह मछली के आधार पानी का बोध करा रहा है।
- भँवरा फूलों पर मँडरा रहा है। - इस वाक्य में ‘फूलों पर’ अधिकरण कारक है।
- कमरे में टी.वी. रखा है। - इस वाक्य में ‘कमरे में’ अधिकरण कारक है।
अधिकरण कारक, सप्तमी विभक्ति - संस्कृत
1. अधिकरणे सप्तमी
अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे -- छात्राः विद्यालये पठन्ति । छात्रः विद्यालय में पढ़ते हैं।
2. यस्य च भावेन भावलक्षणम्/भावे सप्तमी
जिस क्रिया के काल से दूसरी क्रिया के काल का ज्ञान हो, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे-- सूर्ये अस्तं गते सः गतः । सूर्य के अस्त हो जाने पर वह गया।
- गोषु दुयमानासु गतः । वह गायों के दूहे जाने के समय गया ।
- रामे वनं गते मृतो दशरथः । राम के वन जाने पर दशरथ मर गए।
3. अवच्छेदे सप्तमी
शरीर के किसी अंग में यदि सप्तमी विभक्ति लगी रहती है। तो उसे ‘अवच्छेदे सप्तमी' कहते हैं। जैसे-- करे गृहीत्वा कथितः । कर में लेकर कहा।
4. यतश्च निर्धारणम्
बहुतों में किसी को श्रेष्ठतम् बताने में जिसमें श्रेष्ठ बताया जाय उसमें षष्ठी और सप्तमी दोनों विभक्तियाँ लगाई जाती हैं। जैसे-- कवीनां/कविषु कालिदासः श्रेष्ठाः। कवियों में कालिदास श्रेष्ठ ।
- नदीषु गङ्गा पवित्रमा । गंगा सबसे पवित्र नदी है ।
- नारीषु सीता पटुतमा आसीत् । नारियों में सीता सबसे उत्तम ।
5. आधारोऽधिकरणम्
कर्ता या कर्म के द्वारा क्रिया का आधार अधिकरण कारक होता है। यानी आधार को ही अधिकरण कहते हैं। यह तीन प्रकार का होता है।- कटे आस्ते मुनिः ? मुनि चटाई पर बैठते हैं। (स्थानवाची)
- पात्रे वर्तते जलम् । पात्र में जल है। (भीतरी आधार)
- मोक्षे इच्छा अस्ति लोकस्य । लोग की इच्छा मोक्ष में है। (विषयवाची)
6. निमित्तात् कर्मयोग
जिस निमित्त के लिए कर्मकारक से युक्त क्रिया की जाती है, उसमें सप्तमी विभक्ति होती है। जैसे-- चर्मणि द्वीपिनं हन्ति । चमड़े के लिए चीते को मारता है।
- दन्तयोः हन्ति कुंजरम् । दाँतों के लिए हाथी को मारता है।
7. स्नेह, आदर, अनुराग, कुशल, निपुण आदि के अर्थ में
स्नेह, आदर, अनुराग, कुशल, निपुण आदि के अर्थ में सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे -- माता बालके स्निह्यति ।
- रामः पितरि आदरम् करोति ।
- रमा वीणायां प्रवीणः अस्ति ।
- सः वार्तालापे कुशलः अस्ति ।
सम्बोधन कारक
जिस शब्द से किसी को पुकारा या बुलाया जाए उसे सम्बोधन कारक कहते हैं। इसकी कोई विभक्ति नहीं होती है। इसको पहचानने करने के लिए (!) चिन्ह लगाया जाता है। इसके चिन्ह हे, अरे, अजी आदि होते हैं।अथवा - जिससे किसी को बुलाने अथवा पुकारने का भाव प्रकट हो उसे संबोधन कारक कहते है और संबोधन चिह्न (!) लगाया जाता है। जैसे – हे राम ! यह क्या हो गया।
उदाहरण
- हे राम ! यह क्या हो गया। - इस वाक्य में ‘हे राम!’ सम्बोधन कारक है, क्योंकि यह सम्बोधन है।
- अरे भैया ! क्यों रो रहे हो ? - इस वाक्य में ‘अरे भैया’ ! संबोधन कारक है।
- हे गोपाल ! यहाँ आओ। - इस वाक्य में ‘हे गोपाल’ ! संबोधन कारक है।
सम्बोधन कारक की परिभाषा
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से बुलाने या पुकारने का ज्ञान हो उसे सम्बोधन कहते हैं। अथवा - जहाँ पर पुकारने , चेतावनी देने , ध्यान बटाने के लिए जब सम्बोधित किया जाता है उसे सम्बोधन कारक कहते हैं।सम्बोधन कारक के उदाहरण
- अरे रमेश ! तुम यहां कैसे ?
- अजी ! सुनते हो क्या।
- हे ईश्वर ! रक्षा करो।
- अरे ! बच्चो शोर मत करो।
- हे राम ! यह क्या हो गया।
- अरे भाई ! यहाँ आओ।
- अरे राम! बहुत बुरा हुआ।
- अरे भाई ! तुम तो बहुत दिनों में आये।
- अरे बच्चों! शोर मत करो।
- हे ईश्वर! इन सभी नादानों की रक्षा करना।
- अरे! यह इतना बड़ा हो गया।
- अजी तुम उसे क्या मरोगे ?
- बाबूजी ! आप यहाँ बैठें।
- अरे राम ! जरा इधर आना।
- अरे ! आप आ गये।
हिन्दी की ये विभक्तियाँ जिन्हें परसर्ग कहा जाता है।
# | विभक्ति | चिन्ह(परसर्ग ) | सूत्र |
---|---|---|---|
1. | कर्त्ता कारक | ने | स्वतंत्र कर्त्ता |
2. | कर्म कारक | को | कर्तुरीप्सिततम् कर्मः |
3. | करण कारक | से, द्वारा (साधन के लिए) | साधकतम् करणम् |
4. | सम्प्रदान कारक | को, के लिए | कमर्णा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम् |
5. | अपादान कारक | से (जुदाई के लिए) | ध्रुवमपायेऽपादानम् |
6. | संबंध कारक | का-के-की, ना-ने-नी, रा-रे-री | षष्ठीशेशे |
7. | अधिकरण कारक | में, पर | आधारोधिकरणम् |
कारक के भेद -
- कर्त्ता कारक (प्रथमा विभक्ति) (Nominative Case)
- कर्म कारक (द्वितीया विभक्ति) (Objective Case)
- करण कारक (तृतीया विभक्ति)
- सम्प्रदान कारक (चतुर्थी विभक्ति)
- अपादान कारक (पंचमी विभक्ति)
- संबंध कारक (षष्ठी विभक्ति) (Possessive Case)
- अधिकरण कारक (सप्तमी विभक्ति)
हिन्दी में कारक
हिन्दी से संस्कृत में Translate करने के लिए हिन्दी के कारकों का संक्षिप्त विवरण जानना अत्यावश्यक है।1. कर्ता कारक ( ने)
जो क्रिया करता है, उसे ‘कर्ता कारक' कहते हैं। इसके चिह्न '0' और 'ने' हैं। शून्य से तात्पर्य है–'ने' चिह्न का अभाव । जैसे—- वह जाता है—सः गच्छति । ('0' चिहन)
- राम ने रावण को मारा–रामः रावणं हतवान् ('ने' चिह्न) ।