संस्कृत अलंकार
‘अलंकार शब्द’ ‘अलम्’ और ‘कार' के योग से बना है, जिसका अर्थ होता है- आभूषण या विभूषित करनेवाला । शब्द और अर्थ दोनों ही काव्य के शरीर माने जाते हैं अतएव, वाक्यों में शब्दगत और अर्थगत चमत्कार बढ़ानेवाले तत्व को ही अलंकार कहा जाता है।
जिस प्रकार स्त्री की शोभा आभूषण से उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार से होती है अर्थात जो किसी वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार कहलाता है। दूसरे अर्थ में- काव्य अथवा भाषा को शोभा बनाने वाले मनोरंजक ढंग को अलंकार कहते है।
केशवदास ने इसकी महत्ता स्वीकारते हुए कितना सटीक कहा है- "भूषण बिनु न विराजई कविता वनिता मित्त" शब्दगत चमत्कार को रीतिकारों ने शब्दालंकार और अर्थगत चमत्कार को अर्थालंकार कहा है। अनुप्रास, श्लेष, यमक, वरमैत्री आदि शब्दालंकार और उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि अर्थालंकार। कहलाते हैं। अलंकारों की संख्या बताने में मतैक्य नहीं दिखता है। आचार्य मम्मट ने अपनी सुप्रसिद्ध रचना काव्यप्रकाश में 67 अलंकारों की चर्चा की है तो भरतमुनि ने 4, वामन ने 33, दण्डी ने 35, भामह ने 39, उद्भट्ट ने 40, रुद्रट ने 52, जयदेव ने अपनी रचना ‘चंद्रालोक' में 100 और अप्पयदीक्षित ने कुवलयानन्द में 124 अलंकारों की बात कही है।
अलंकार के भेद और प्रकार
आचार्य मम्मट ने अपनी सुप्रसिद्ध रचना काव्यप्रकाश में 67 प्रकार के अलंकारों के भेद की चर्चा की है तो भरतमुनि ने 4, वामन ने 33, दण्डी ने 35, भामह ने 39, उद्भट्ट ने 40, रुद्रट ने 52, जयदेव ने अपनी रचना ‘चंद्रालोक' में 100 और अप्पयदीक्षित ने कुवलयानन्द में 124 अलंकारों की बात कही है। कुछ प्रमुख अलंकार नीचे दिये गए हैं-
शब्दालंकार के भेद
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- पुनरुक्ति अलंकार
- विप्सा अलंकार
- वक्रोक्ति अलंकार
- श्लेष अलंकार
अर्थालंकार के भेद
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- द्रष्टान्त अलंकार
- संदेह अलंकार
- अतिश्योक्ति अलंकार
- उपमेयोपमा अलंकार
- प्रतीप अलंकार
- अनन्वय अलंकार
- भ्रांतिमान अलंकार
- दीपक अलंकार
- अपहृति अलंकार
- व्यतिरेक अलंकार
- विभावना अलंकार
- विशेषोक्ति अलंकार
- अर्थान्तरन्यास अलंकार
- उल्लेख अलंकार
- विरोधाभाष अलंकार
- असंगति अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
- अन्योक्ति अलंकार
- काव्यलिंग अलंकार
- स्वभावोक्ति अलंकार
- कारणमाला अलंकार
- पर्याय अलंकार
- स्वभावोक्ति अलंकार
- समासोक्ति अलंकार
अलंकार के उदाहरण(अनुप्रासालंकारः)
1.
दधे कामपरिक्षामकामिनीगण्डपाण्डुताम् ।। ।
2.
अलमलमानि! मृणालैरिति वदति दिवानिशंबात्य ।।
3.
यस्य च सविधे दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य ।।
अलंकार के उदाहरण
1.
सन्नारीभरणोऽमायस्ततस्त्वं पृथिवीं जय ।।
2.
महाजनोऽदीयत मानसादरं महाजनोदीयतमानसादरम् ।।
3.
या च मातेव भजते प्रणते मानवे दयाम् ।।
अनुप्रासालंकारः (संस्कृत)
वर्णसाम्यमनुप्रासः । स्वरवैसादृश्येऽपिव्यंजनदृशत्वं वर्णसाम्यम् । रसायनुगतः प्रकृष्टो न्यासोऽनुप्रासः । इस अलंकार में किसी व्यंजन वर्ण की आवृत्ति होती है। ‘आवृत्ति का मतलब है—दुहराना । अर्थात् जब किसी वाक्य में कोई खास व्यंजन वर्ण या पद अथवा वाक्यांश लगातार आकर उसके सौंदर्य को बढ़ा दे, तब वहाँ ‘अनुप्रास अलंकार' होता है।उदाहरणस्वरूपः
1.दधे कामपरिक्षामकामिनीगण्डपाण्डुताम् ।। ।
अलमलमानि! मृणालैरिति वदति दिवानिशंबात्य ।।
यस्य च सविधे दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य ।।
अनुप्रास अलंकार के भेद
- छेकानुप्रास अलंकार
- वृत्यानुप्रास अलंकार
- लाटानुप्रास अलंकार
- अन्त्यानुप्रास अलंकार
- श्रुत्यानुप्रास अलंकार
अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – अनु + प्रास। यहाँ पर अनु का अर्थ है- बार -बार और प्रास का अर्थ होता है – वर्ण। जब किसी वर्ण की बार – बार आवर्ती हो तब जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते है। यह अलंकार शब्दालंकार के 6 भेदों में से एक हैं।अनुप्रास अलंकार की परिभाषा
अनुप्रास अलंकार का उदाहरण
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।।
अनुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण
उदाहरण 1.
उदाहरण 2.
उदाहरण 3.
उदाहरण 4.
उदाहरण 5.
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।
उदाहरण 6.
सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
उदाहरण 7.
उदाहरण 8.
उदाहरण 9.
उदाहरण 10.
उदाहरण 11.
निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
यमकालंकारः संस्कृत
'अर्थे सत्यर्थभिन्नानां वर्णानां सा पुनः श्रुतिः' -जिस काव्य में एक शब्द कई बार आकर अलग-अलग अर्थ दे, वहाँ यमक अलंकार माना जाता है। इस अलंकार में और श्लेष अलंकार में अनेकार्थी शब्दों का प्रयोग हुआ करता है, इसलिए ऐसे शब्दों की जानकारी अपेक्षित है।उदाहरणस्वरूप :
1.सन्नारीभरणोऽमायस्ततस्त्वं पृथिवीं जय ।।
महाजनोऽदीयत मानसादरं महाजनोदीयतमानसादरम् ।।
या च मातेव भजते प्रणते मानवे दयाम् ।।
यमक अलंकार
यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है। प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ हर बार अलग होता है। शब्द की दो बार आवृति होना वाक्य का यमक अलंकार के अंतर्गत आने के लिए आवश्यक है।यमक अलंकार की परिभाषा
यमक शब्द का अर्थ होता है – दो, जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है। अर्थात जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है। यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के शब्दालंकार के भेदों में से एक हैं।यमक अलंकार का उदाहरण
1.कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
2.
या खाए बौरात नर या पा बौराय।।
3.
ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती है।।
फिर झट गुलकर दिया दिया को दोनों आँखें मिंची।।
कर का मनका डारि दै, मन का मनका फेर।।
जगती जगती की मूक प्यास।
हरिनी के नैनान ते हरिनी के ये नैन।
तू मोहन के उर बसी ह्वे उरबसी सामान।
थक गए दिल के चाक सी सी कर।
यों जिये जिस तरह उगे सब्ज़,
रेग जारों में ओस पी पी कर।।
ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती है।।
श्लेषालंकारः - संस्कृत
‘वाच्यभेदेन भिन्ना यद् युगपदभाषणस्पृशः ।श्लिष्यन्ति शब्दाः श्लेषोऽसावक्षरादिभिरष्टधा ।।''
‘श्लेषः स वाक्ये एकस्मिन् यत्रानेकार्थता भवेत्'
'श्लेष का अर्थ होता है—चिपकना । अर्थात् एकाधिक अर्थवाले शब्द को श्लिष्ट शब्द कहा जाता है। जब किसी वाक्य में ऐसे श्लिष्ट शब्दों का प्रयोग हो और या तो वह शब्द कई अर्थ लाए या फिर उसके कारण अर्थ में एकाधिकता आ जाए, तब श्लेषालंकार अपनी छटा बिखेरने लगता है।
उदाहरणस्वरूपः
1.विशीर्णाङ्गो भृङ्गो वसु च वृष एकोबहुवयाः ।
अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति सर्वामिरगुरोः
विधौ वक्रे मूर्ध्नि स्थितवति वयं के पुनरमी ।।
2.
विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम् ।।
(क) पृथुकार्तस्वरपात्र
- याचक का घर बालकों का भूख से रोने का स्थान है।
- राजा का घर (महल) सोने के बड़े-बड़े बरतनों से युक्त है।
(ख) भूषितनिःशेषपरिजनं
- सारे जन अलंकृत हैं (राजा के पक्ष में)
- सारे परिजन भूमि पर पड़े हैं।
(ग) विलसत्करेणुगहनं
- झूमती हुई हथिनियों से युक्त महल (राजा के पक्ष में)
- चूहों के खोदे हुए बिलों की धूल से भरा घर (याचक के पक्ष में)
कुछ अन्य उदाहरण :
1.त्रिगुणा श्रूयते बुद्धिर्न तु दारुमयी क्वचित् ।।
प्रभातसन्ध्ये वा स्वापफललुब्धे हितप्रदा ।।
श्लेष अलंकार की परिभाषा
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है। अर्थात श्लेष का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ, जब एक शब्द से हमें विभिन्न अर्थ मिलते हों तो उस समय श्लेष अलंकार होता है। अर्थात जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो वह श्लेष अलंकार कहलाता है।यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के शब्दालंकार के भेदों में से एक हैं।
श्लेष अलंकार का उदाहरण
1.बारे उजियारो करै, बढ़े अंघेरो होय।
2.
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
3.
जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक
मैलो होय न मित्त राज राजस
न छुवाइये नेह चीकने चित्त।।
चलि रघुवीर सिलीमुख।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक।
विशीर्णाङ्गो भृङ्गो वसु च वृष एकोबहुवयाः ।
अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति सर्वामिरगुरोः
विधौ वक्रे मूर्ध्नि स्थितवति वयं के पुनरमी ।।
उपमालंकार: संस्कृत
‘उप' का अर्थ होता है—समीप से और ‘मा' का अर्थ है–तौलना या देखना । जब दो भिन्न वस्तुओं या व्यक्तियों में समान धर्म के कारण समानता दिखाई दे, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है। इसके मुख्यतया चार अंग होते हैं-
- उपमान : जिससे उपमा दी जाती है।
- उपमेय : जिसके लिए उपमा दी जाती है।
- साधारण धर्म : उपमान और उपमेय में समान गुण ।
- वाचकः -उपमान और उपमेय के बीच समानता दर्शाने के लिए प्रयुक्त सादृश्यवाचक शब्द।
उदाहरण: अगर किसी के सौंदर्य के वर्णन में कहा जाय कि उसका पख चंद्रमा के समान सुंदर है तो इसमें मुख को उपमेय, चंद्रमा को उपमान, ‘संदर' को साधारण धर्म और ‘के समान' को वाचक माना जाएगा।
कविकुलगुरु कालिदास को उपमासम्राट् कहा जाता है। यानी कालिदास ने उपमा का। प्रयोग जमकर और अत्यंत रुचिकर किया है। रीतिकारों ने एक मत से स्वीकार करते हुए लिखा है-
इस अलंकार के कुछ उदाहरण देखें-
1.
स्वप्नेऽपि समरेषु त्वां विजयश्रीनिंमुञ्चति ।
प्रभावप्रभवं कान्तं स्वाधीनपतिका यथा ।।2.
गाम्भीर्यगरिमा तस्य सत्यं गङ्गाभुजङ्गवत् ।
दुरालोकः स समरे निदाधाम्बररत्नवत् ।।3.
आकृष्ट करवालोऽसौ सम्पराये परिभ्रमन् ।
प्रत्यर्थिसेनया दृष्टः कृतान्तेन समः प्रभुः ।।4.
करवालइवाचारस्तस्य वागमृतोपमा ।
विषकल्पं मनो वेत्सि यदि जीवसि तत्सखे ।।5.
ततः कुमुदनाथेन कामिनीगण्डपाण्डुना।
नेत्रानन्देन चन्द्रेण माहेन्द्रीदिगलङ्कृता ।।
प्रभावप्रभवं कान्तं स्वाधीनपतिका यथा ।।
दुरालोकः स समरे निदाधाम्बररत्नवत् ।।
प्रत्यर्थिसेनया दृष्टः कृतान्तेन समः प्रभुः ।।
विषकल्पं मनो वेत्सि यदि जीवसि तत्सखे ।।
नेत्रानन्देन चन्द्रेण माहेन्द्रीदिगलङ्कृता ।।
उपमा अलंकार
उपमा शब्द का अर्थ होता है – तुलना।, जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे यक्ति या वस्तु से की जाए वहाँ पर उपमा अलंकार होता है। अर्थात जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है। यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेद में से एक हैं।उपमा अलंकार के अंग
उपमा अलंकार के निम्न चार अंग होते हैं - उपमेय, उपमान, वाचक शब्द, साधारण धर्म।उपमेय
उपमेय का अर्थ होता है – उपमा देने के योग्य। अगर जिस वस्तु की समानता किसी दूसरी वस्तु से की जाये वहाँ पर उपमेय होता है।उपमान
उपमेय की उपमा जिससे दी जाती है उसे उपमान कहते हैं। अथार्त उपमेय की जिस के साथ समानता बताई जाती है उसे उपमान कहते हैं।वाचक शब्द
जब उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है तब जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे वाचक शब्द कहते हैं।साधारण धर्म
दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जब किसी ऐसे गुण या धर्म की मदद ली जाती है जो दोनों में वर्तमान स्थिति में हो उसी गुण या धर्म को साधारण धर्म कहते हैं।उपमा अलंकार के भेद
उपमा अलंकार के मुख्य रूप से दो भेद होते है। जो इस प्रकार हैं- भेद पूर्णोपमा अलंकार, लुप्तोपमा अलंकार।पूर्णोपमा अलंकार
इसमें उपमा के सभी अंग होते हैं – उपमेय , उपमान , वाचक शब्द , साधारण धर्म आदि अंग होते हैं वहाँ पर पूर्णोपमा अलंकार होता है। जैसे -लुप्तोपमा अलंकार
इसमें उपमा के चारों अगों में से यदि एक या दो का या फिर तीन का न होना पाया जाए वहाँ पर लुप्तोपमा अलंकार होता है। जैसे -जैसा हम देख सकते हैं कि इसमें उपमेय नहीं है तो इसलिए यह लुप्तोपमा का उदहारण है।
उपमा अलंकार के उदाहरण
1.2.
3.
Examples of Upama Alankar
6.रूपकालंकारः संस्कृत
अम्बर पनघट में डुबो रही
तारा घट ऊषा नागरी।''
संस्कृत साहित्यकारों द्वारा दिए गए उदाहरणों को देखें-
1.न्यन्तद्धनिव्यसनरसिका रात्रिकापालिकीयम् ।
द्वीपाद द्वीपं भ्रमति दधती चन्द्रमुद्राकपाले
न्यस्त सिद्धाञ्जनपरिमलं लाञ्छनस्यच्छलेन ।।
2.
रससम्मुख्यपि सहसा पराङ्मुखी भवति रिपुसेना ।।
कान्तेः कार्मणकर्मनर्मरहसमुल्लासनावासभूः ।
विद्यावक्रगिरां विधेरनविधिप्रावीण्यसाक्षाक्रिया
बाणाः पञ्चशिलीमुखस्य ललनाचूडामणिः सा प्रिया ।।
रूपक अलंकार
रूपक अलंकार के उदाहरण
1.अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घाट उषा नगरी।
6.
विकसे संत सरोज सब हर्षे लोचन भंग।
अंचल में दीप छिपाये।
स्वयं ही मुरझा गया तेरा हृदय-जलजात।
दृष्टांतालंकारः संस्कृत
‘दृष्टांतः पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम्' - अर्थात् उपमान, उपमेय, उनके विशेषण और साधारण धर्म का भिन्न होते हुए भी औपम्य के प्रतिपादनार्थ उपमान वाक्य तथा उपमेय वाक्य में पृथगुपादानरूप बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होने पर दृष्टांत अलंकार होता है।
उदाहरणस्वरूपः
1.
त्वयि दृष्ट एव तस्या निर्वाति मनो मनोभवज्वलितम् ।।
आलोक ही हिमांशोर्विकसति कुसुमं कुमुद्वत्याः ।स्पष्टीकरण– यहाँ नायक -चन्द्रमा, नायिका -कुमुदिनी और मन -कुसुम का मनोभव सन्तप्तत्व तथा सूर्यसंतप्तत्व का निर्वाण और विकास का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव होने के कारण दृष्टांत अलंकार हुआ है।
2.
तवाहवे साहसकर्मशर्मणः करं कृपाणान्तिकमानिनीषतः ।।
मटाः परेषां विशरारूतामगः दधत्यवातेस्थिरतां हि पासवः ।स्पष्टीकरण– यहाँ ‘धूल' तथा 'शत्र सैनिकों का और पलायन एवं अस्थिरत्व का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव है।
आलोक ही हिमांशोर्विकसति कुसुमं कुमुद्वत्याः ।
मटाः परेषां विशरारूतामगः दधत्यवातेस्थिरतां हि पासवः ।
दृष्टान्त अलंकार
दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण
1.किसी और पर प्रेम नारियाँ, पति का क्या सह सकती है।।
देखो भयंकर भेड़िये भी आज आँसू ढालते।
Example of Drashtant Alankar
3.कभी नहीं रह सकती है।
किसी और पर प्रेम नारियाँ,
पति का क्या सह सकती है।।
सन्देहालंकारः संस्कृत
'ससन्देहस्तु भेदोक्तौ तदनुक्तौ च संशयः' - उपमेय में जब उपमान का संशय हो, तब संदेह अलंकार होता है। नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-
1.
जय मार्तण्डः किंम? स खलु तुरगैः सप्तभिरितः
कृशानुः किं? सर्वाः प्रसरति दिशौ नैष नियतम् ।
कृतान्तः किं? साक्षान्महिषवहनोऽसाविति चिरं ।
समालोक्याजौ त्वां विधदति विकल्पान् प्रतिभटाः ।।2.
इन्दुः किं क्व कलङ्कः सरसिजमेतत्किमम्बु कुत्र गतम् ।
ललित सविलासवचनैर्मुखमिति हरिणाक्षि! निश्चित परतः ।।
कृशानुः किं? सर्वाः प्रसरति दिशौ नैष नियतम् ।
कृतान्तः किं? साक्षान्महिषवहनोऽसाविति चिरं ।
समालोक्याजौ त्वां विधदति विकल्पान् प्रतिभटाः ।।
ललित सविलासवचनैर्मुखमिति हरिणाक्षि! निश्चित परतः ।।
सन्देह अलंकार
परिभाषा: रूप-रंग, आदि के साद्रश्य से जहां उपमेय में उपमान का संशय बना रहे या उपमेय के लिए दिए गए उपमानों में संशय रहे, वहाँ सन्देह अलंकार होता है।जब उपमेय और उपमान में समता देखकर यह निश्चय नहीं हो पाता कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनती है , तब संदेह अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे वहाँ संदेह अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है। यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।
सन्देह अलंकार के उदाहरण
1.सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।
2.
क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया।
अतिशयोक्ति अलंकारः
'उपमानेनान्तर्निगीर्णस्योपमेयस्य यदध्यवसानं सैका' - इस अलंकार में लोक सीमा से बढ़कर तारीफ या निंदा की जाती है।
उदाहरण:
1.
कमलमनम्भसि कमले च कुवलये तानि कनकलतिकायाम् ।।
सा च सुकुमारसुभगेत्युत्पातपरम्परा केयम् ।।।स्पष्टीकरण– यहाँ उपमानरूप कमलादि के द्वारा उपमेयभूत मुखादि का निगरण करककमलादि रूप से अभिन्नतया निश्चित किए गए हैं।
2.
अन्यत् सौकुमार्यमन्यैव च कापि वर्तनच्छाया ।
श्यामा सामान्यप्रजापतेः रेखैव च न भवति ।।स्पष्टीकरण– यहाँ लोकप्रसिद्ध सौन्दर्य तथा शरीर कान्ति का ही कवि ने 'अन्य' अर्थात् अलौकिक लोकोत्तर रूप वर्णन किया है।
सा च सुकुमारसुभगेत्युत्पातपरम्परा केयम् ।।।
श्यामा सामान्यप्रजापतेः रेखैव च न भवति ।।
अतिश्योक्ति अलंकार
परिभाषा- जहाँ किसी वस्तु का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि सामान्य लोक सीमा का उल्लंघन हो जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। अर्थात जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करने में लोक समाज की सीमा या मर्यादा टूट जाये उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं।यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।
अतिश्योक्ति अलंकार के उदाहरण
1.सगरी लंका जल गई , गये निसाचर भागि।
2.
3.
घोडा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार
तब तक चेतक था उस पार।
और चढ़ाया उस पर बाण
धरा–सिन्धु नभ काँपे सहसा,
विकल हुए जीवों के प्राण।
लगे उठावन टरत न टारा।।
चन्द्रिका पर्व में जैसे
उस पावन तन की शोभा
आलोक मधुर थी ऐसे।।
स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
पंखुरी लगे गुलाब की, परि है गात खरौंट।
मणिवाले फणियों का मुख क्यों भरा हुआ है हीरों से।
अतिशयोक्ति अलंकार के भेद
(i) रूपकातिशयोक्ति, (ii) सम्बन्धातिशयोक्ति,(iii) भेदकातिशयोक्ति, (iv) चपलातिशयोक्ति, (v) अति- क्रमातिशयोक्ति, (vi) असम्बन्धातिशयोक्ति।
दीपकालंकारः संस्कृत
जिस अलंकार में उपमान तथा उपमेय का क्रियादिरूप धर्म जो एक ही बार ग्रहण किया जाता है, वह एक जगह स्थित भी समस्त वाक्य का दीपक होने से 'दीपकालंकार होता है।
जैसे - दरवाजे की देहलीज पर रखा दीपक कमरे के बाहर और भीतर दोनों जगह प्रकाश करता है।
उदाहरणस्वरूप :
1
कपणानां धनं नागानां फणमणिः केसराः सिंहानाम् ।
कुलबालिकानां स्तनाः कुतः स्पृश्यन्तेऽमृतानाम् ।।2.
स्वियति कूणति वेल्लति विचलति निमिषति विलोकयति तिर्यक ।।
अन्तर्नन्दति चुम्बितुमिच्छति नवपरिणया वधूः शयने ।।।स्पष्टीकरण - प्रथम उदाहरण में एक ही क्रियापद ‘स्पृश्यन्ते' है और उसके साथ धन, फणमणि, केसर और स्तनादि अनेक कारकों का सम्बन्ध स्थापित हुआ है।
कुलबालिकानां स्तनाः कुतः स्पृश्यन्तेऽमृतानाम् ।।
अन्तर्नन्दति चुम्बितुमिच्छति नवपरिणया वधूः शयने ।।।
दीपक अलंकार
परिभाषा- जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है वहाँ पर दीपक अलंकार होता है। यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।दीपक अलंकार के उदाहरण
1.अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज।।
व्यतिरेकालंकारः संस्कृत
"उपमानाद् यदन्यस्य व्यतिरेकः स एवं सः । अन्यस्योपमेयस्य | व्यतिरेकः आधिक्यम् ।" - अर्थात उपमान से अन्य यानी उपमेय का जो (विशेषण अतिरेकः व्यतिरेकः) आधिक्य का वर्णन ही व्यतिरेकालंकार है।
उदाहरणस्वरूप
क्षीणः क्षीणोऽपि शशि भूयो भूयोऽभिवर्धते सत्यम् ।
विरम प्रसीद सुन्दरि! यौवनमनिवर्ति यातं तु ।स्पष्टीकरण- यहाँ ‘क्षीणः क्षीणोऽपि शशी' इत्यादि में उपमान (चन्द्रमा) का उपमेय (यौवन) से आधिक्य वर्णित है। यहाँ यौवनगत अस्थैर्य का आधिक्य ही कवि को विवक्षित है।
विरम प्रसीद सुन्दरि! यौवनमनिवर्ति यातं तु ।
व्यतिरेक अलंकार
परिभाषा: जहाँ कारण बताते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई जाए वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है। व्यतिरेक का शाब्दिक अर्थ होता है आधिक्य। व्यतिरेक में कारण का होना जरुरी है। अत: जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक अलंकार होता है।यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।
व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण
चाँद कलंकी वह निकलंकू।।
विभावनालंकारः संस्कृत
"क्रियायाः प्रतिषेधेऽपि फलव्यक्तिर्विभावना।
हेतुरूप क्रियाया निषेधेऽपि तत्फलप्रकाशनं विभावना।"
हेतु क्रिया (कारण) का निषेध होने पर भी फल की उत्पत्ति विभावनालंकार है।
उदाहरणस्वरूप :
कसमितलताभिरहताऽप्यधत रुजमलिकलैग्दष्टापि।
परिवर्तते स्म नलिनीलहरीभिरलोलिताप्यघूर्णतसा ।स्पष्टीकरण– यहाँ लताओं की चोट पीड़ा का हेतु हो सकती थी, भौरे का काटना तड़पने और कमलिनी की लहरों के चक्कर में फंसना चक्कर आने का कारण हो सकता था; परंतु उन कारणों का निषेध करने पर भी कार्य का प्रकाशन किया गया है।
परिवर्तते स्म नलिनीलहरीभिरलोलिताप्यघूर्णतसा ।
विभावना अलंकार
परिभाषा - जहाँ पर कारण के न होते हुए भी कार्य का हुआ जाना पाया जाए वहाँ पर विभावना अलंकार होता है। अर्थात हेतु क्रिया (कारण) का निषेध होने पर भी फल की उत्पत्ति विभावनालंकार है।यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।
विभावना अलंकार के उदाहरण
कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।
विशेषोक्ति अलंकारः संस्कृत
‘‘विशेषोक्तिरखणेषु कारणेषु फलावचः,
संपूर्ण कारणों के होने पर भी फल का न कहना विशेषोक्ति है।
उदाहरणस्वरूप :
निद्रानिवृत्तावुदिते रत्ने सखीजने द्वारपदं पराप्ते,
श्लथीकृताश्लेषरसे भुजङ्गे चचाल नालिङ्गनतोऽङ्गना सा ।।स्पष्टीकरण– यहाँ निद्रानिवृत्ति, सूर्य का उदय होना तथा सखियों का द्वार पर आना आलिंगन परित्याग करने के कारण उपस्थित है, फिर भी नायिका आलिंगन का त्याग नहीं कर पा रही है।
श्लथीकृताश्लेषरसे भुजङ्गे चचाल नालिङ्गनतोऽङ्गना सा ।।
अन्य उदाहरण :
1.
कर्पूर इव दग्धोऽपि शक्तिमान् यो जने जने ।
नमोऽस्त्ववार्यवीर्याय तस्मै मकरकेतवे ।।2.
सः एकस्त्रीणि जयति जगन्ति कुसुमायुधः ।
हरताऽपि तनुं यस्य शम्भुना न वलं हृतम् ।।
नमोऽस्त्ववार्यवीर्याय तस्मै मकरकेतवे ।।
हरताऽपि तनुं यस्य शम्भुना न वलं हृतम् ।।
विशेषोक्ति अलंकार
परिभाषा: संपूर्ण कारणों के होने पर भी फल का न कहना विशेषोक्ति है। अर्थात काव्य में जहाँ कार्य सिद्धि के समस्त कारणों के विद्यमान रहते हुए भी कार्य न हो वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है।यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।
विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण
1.नीर भरे नित प्रति रहे तउ न प्यास बुझाय।।
फूलहि फलहि न बेत , जदपि सुधा बरसहिं जलद
विरोधाभासालंकारः संस्कृत
'विरोधः सोऽविरोधेऽपि विरुद्धत्वेन यद्वचः' - वास्तव में विरोध न होने पर भी विरुद्ध रूप से जो वर्णन करना यह विरोधाभास होता है।
उदाहरणस्वरूप :
1.
गिरयोऽप्यनुन्नतियुजो मरुदप्यचलोऽब्धयोऽप्यगम्भीराः ।।
विश्वम्भराऽप्यतिलघर्नरनाथ! तवान्तिके नियतम् ।।स्पष्टीकरण- यहाँ ‘गिरि आदि जातिवाचक शब्दों का जो अनुन्नतत्वादि वर्णित है, उनमें जाति का गुण के साथ विरोध दिखाया गया है।
2.
सततं मुसलासक्ता बहुतरग्रहकर्मघटनया नृपते!
द्विजपलीनां कठिनाः सति भवति कराः सरोजसुकुमाराः ।।3.
पेशलमपि खलवचनं दहतितरां मानसं सतत्त्वविदाम् ।।
परुषमपि सुजन वाक्यं मलयजरसवत् प्रमोदयति ।।
विश्वम्भराऽप्यतिलघर्नरनाथ! तवान्तिके नियतम् ।।
द्विजपलीनां कठिनाः सति भवति कराः सरोजसुकुमाराः ।।
परुषमपि सुजन वाक्यं मलयजरसवत् प्रमोदयति ।।
विरोधाभाष अलंकार
परिभाषा– जहाँ वास्तविक विरोध न होकर केवल विरोध का आभास हो, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। अर्थात जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध न होते हुए भी विरोध का आभाष हो वहाँ पर विरोधाभास अलंकार होता है।यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।
विरोधाभाष अलंकार के उदाहरण
1.2.
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।
काव्यलिङ्गालङ्कारः संस्कृत
'काव्यलिङ्गहेतोर्वाक्यपदार्थता' - हेतु का वाक्यार्थ अथवा पदार्थ रूप में कथन करना ही काव्यलिङ्गालङ्कार है। उदाहरणस्वरूपः
2.
वपुः प्रादुर्भावादनुमितमिदं जन्मनि पुरा
परारे! न प्रायः क्वचिदपि भवन्तं प्रणतवान् ।
नमन्मुक्तः सम्प्रत्यहमतनुरग्रेऽप्यनतिभाक्
महेश! क्षन्तव्यं तदिदमपराधद्वयमपि ।।स्पष्टीकरण- यहाँ ‘पुरा जन्मनि भवन्तं न प्रणतवान्' और 'अग्रेऽप्यनतिभाक्' इन वाक्यों का अर्थ अपराधद्वय का हेतु है।
परारे! न प्रायः क्वचिदपि भवन्तं प्रणतवान् ।
नमन्मुक्तः सम्प्रत्यहमतनुरग्रेऽप्यनतिभाक्
महेश! क्षन्तव्यं तदिदमपराधद्वयमपि ।।
काव्यलिंग अलंकार
परिभाषा: हेतु का वाक्यार्थ अथवा पदार्थ रूप में कथन करना ही काव्यलिङ्गालङ्कार है। अर्थात जहाँ पर किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को काव्यलिंग अलंकार कहते हैं अथार्त जहाँ पर किसी बात के समर्थन में कोई -न -कोई युक्ति या कारण जरुर दिया जाता है।यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण(Hindi Grammar) के Alankar के भेदों में से एक हैं।
काव्यलिंग अलंकार के उदाहरण
1.उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।।
कारणमाला अलंकार (कारणमालालंकारः)
परिभाषा: 'यथोत्तरं चेत्पूर्वस्य पूर्वस्यार्थस्य हेतुता। तदा कारणमाला स्यात्' - जहाँ अगले-अगले अर्थ के पहले-पहले अर्थ हेतु हों, वहाँ कारणमालालंकार होता है। (यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण(Hindi Grammar) के Alankar के भेदों में से एक हैं।)उदाहरणस्वरूप :
1.गुणप्रकर्षण जनोऽनुरज्यते जनानुरागप्रभवा हि सम्पदः ।।
पात्रत्वात् धनम् आप्नोति धनाधर्मः सुखम् ।।
पर्याय अलंकार (पर्यायालंकार)
परिभाषा: "एक क्रमेणानेकस्मिन् पर्यायः" - एक क्रम से अनेक में पर्यायालंकार होता है। यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण (Hindi Grammar) के अलंकार के भेदों में से एक हैं।उदाहरणस्वरूप : (पर्याय अलंकार - पर्यायालंकार के उदाहरण)
अधुना हृदयेऽप्येष मृगशावाक्षिः लक्ष्यते ।।
स्वभावोक्ति अलंकारः संस्कृत
"स्वभावोक्तिस्तडिम्भादेः स्वक्रियारूप वर्णनम् " - पालकादि की अपनी स्वाभाविक क्रिया अथवा रूप का वर्णन ही स्वभावोक्ति अलंकार है।
उदाहरणस्वरूप :
2.
पश्चादंम्री पसार्य त्रिकनतिविततं द्राधयित्वाङ्गमुच्चः
रासज्यामुग्नकण्ठो मुखमरसि सटां धूलिधम्रा विधूय ।
घासाग्रासाभिलाषादनवरतचलपोथतण्डस्तरङ्गो
मन्दं शब्दायमानो विलिखति शयनादुत्थितः मांखुरेण ।।स्पष्टीकरण- यहाँ घोड़े की स्वाभाविक क्रियाओं के वर्णन से स्वभावोक्ति अलंकार की छटा दिखती है।
रासज्यामुग्नकण्ठो मुखमरसि सटां धूलिधम्रा विधूय ।
घासाग्रासाभिलाषादनवरतचलपोथतण्डस्तरङ्गो
मन्दं शब्दायमानो विलिखति शयनादुत्थितः मांखुरेण ।।
स्वभावोक्ति अलंकार
परिभाषा- बालकादि की अपनी स्वाभाविक क्रिया अथवा रूप का वर्णन ही स्वभावोक्ति अलंकार है। अर्थात किसी वस्तु के स्वाभाविक वर्णन को स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं। यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण(Hindi Grammar) के Alankar के भेदों में से एक हैं।स्वभावोक्ति अलंकार के उदाहरण
1.इहि बानिक मो मन बसौ , सदा बिहारीलाल।।
लगनी लटकी आलीर गरे चित खटकती नित आनी।।
समासोक्ति अलंकार
‘परोक्तिभेदकैः श्लिष्टैः समासोक्तिः' - श्लेषयुक्त विशेषणों के द्वारा दो अर्थों का संक्षेप होने से समासोक्ति अलंकार होता है। यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।समासोक्ति अलंकार के उदाहरण
जय लक्ष्मीस्तव विरहे न खलुज्ज्वला दुर्बला ननु सा ।।