अलंकार

  


संस्कृत अलंकार 


‘अलंकार शब्द’ ‘अलम्’ और ‘कार' के योग से बना है, जिसका अर्थ होता है- आभूषण या विभूषित करनेवाला । शब्द और अर्थ दोनों ही काव्य के शरीर माने जाते हैं अतएव, वाक्यों में शब्दगत और अर्थगत चमत्कार बढ़ानेवाले तत्व को ही अलंकार कहा जाता है।


जिस प्रकार स्त्री की शोभा आभूषण से उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार से होती है अर्थात जो किसी वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार कहलाता है। दूसरे अर्थ में- काव्य अथवा भाषा को शोभा बनाने वाले मनोरंजक ढंग को अलंकार कहते है।


केशवदास ने इसकी महत्ता स्वीकारते हुए कितना सटीक कहा है- "भूषण बिनु न विराजई कविता वनिता मित्त" शब्दगत चमत्कार को रीतिकारों ने शब्दालंकार और अर्थगत चमत्कार को अर्थालंकार कहा है। अनुप्रास, श्लेष, यमक, वरमैत्री आदि शब्दालंकार और उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति आदि अर्थालंकार। कहलाते हैं। अलंकारों की संख्या बताने में मतैक्य नहीं दिखता है। आचार्य मम्मट ने अपनी सुप्रसिद्ध रचना काव्यप्रकाश में 67 अलंकारों की चर्चा की है तो भरतमुनि ने 4, वामन ने 33, दण्डी ने 35, भामह ने 39, उद्भट्ट ने 40, रुद्रट ने 52, जयदेव ने अपनी रचना ‘चंद्रालोक' में 100 और अप्पयदीक्षित ने कुवलयानन्द में 124 अलंकारों की बात कही है।

अलंकार के भेद और प्रकार

आचार्य मम्मट ने अपनी सुप्रसिद्ध रचना काव्यप्रकाश में 67 प्रकार के अलंकारों के भेद की चर्चा की है तो भरतमुनि ने 4, वामन ने 33, दण्डी ने 35, भामह ने 39, उद्भट्ट ने 40, रुद्रट ने 52, जयदेव ने अपनी रचना ‘चंद्रालोक' में 100 और अप्पयदीक्षित ने कुवलयानन्द में 124 अलंकारों की बात कही है। कुछ प्रमुख अलंकार नीचे  दिये गए हैं-

शब्दालंकार के भेद

  1. अनुप्रास अलंकार
  2. यमक अलंकार
  3. पुनरुक्ति अलंकार
  4. विप्सा अलंकार
  5. वक्रोक्ति अलंकार
  6. श्लेष अलंकार

अर्थालंकार के भेद

  1. उपमा अलंकार
  2. रूपक अलंकार
  3. उत्प्रेक्षा अलंकार
  4. द्रष्टान्त अलंकार
  5. संदेह अलंकार
  6. अतिश्योक्ति अलंकार
  7. उपमेयोपमा अलंकार
  8. प्रतीप अलंकार
  9. अनन्वय अलंकार
  10. भ्रांतिमान अलंकार
  11. दीपक अलंकार
  12. अपहृति अलंकार
  13. व्यतिरेक अलंकार
  14. विभावना अलंकार
  15. विशेषोक्ति अलंकार
  16. अर्थान्तरन्यास अलंकार
  17. उल्लेख अलंकार
  18. विरोधाभाष अलंकार
  19. असंगति अलंकार
  20. मानवीकरण अलंकार
  21. अन्योक्ति अलंकार
  22. काव्यलिंग अलंकार
  23. स्वभावोक्ति अलंकार
  24. कारणमाला अलंकार
  25. पर्याय अलंकार
  26. स्वभावोक्ति अलंकार
  27. समासोक्ति अलंकार

    अलंकार के उदाहरण(अनुप्रासालंकारः) 

    1.

    ततोऽरुणपरिस्पन्दमन्दीकृतवपुः शशी ।
    दधे कामपरिक्षामकामिनीगण्डपाण्डुताम् ।। ।

    2.

    अपसारय घनसारं कुरु हारं दूर एवं किं कमलैः ।
    अलमलमानि! मृणालैरिति वदति दिवानिशंबात्य ।।

    3.

    यस्य न सविधै दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य।
    यस्य च सविधे दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य ।।

     अलंकार के उदाहरण

    1.

    सन्नारीभरणोमायमाराध्य विधुशेखरम् ।।
    सन्नारीभरणोऽमायस्ततस्त्वं पृथिवीं जय ।।

    2.

    विनायमेनोनयताऽसुखादिना विना यमेनोनयता सुखादिना। ।
    महाजनोऽदीयत मानसादरं महाजनोदीयतमानसादरम् ।।

    3.

    अनन्तमहिमव्याप्तविश्वां वेधा न वेद याम् ।
    या च मातेव भजते प्रणते मानवे दयाम् ।। 


     

    अनुप्रासालंकारः (संस्कृत)

    वर्णसाम्यमनुप्रासः । स्वरवैसादृश्येऽपिव्यंजनदृशत्वं वर्णसाम्यम् । रसायनुगतः प्रकृष्टो न्यासोऽनुप्रासः । इस अलंकार में किसी व्यंजन वर्ण की आवृत्ति होती है। ‘आवृत्ति का मतलब है—दुहराना । अर्थात् जब किसी वाक्य में कोई खास व्यंजन वर्ण या पद अथवा वाक्यांश लगातार आकर उसके सौंदर्य को बढ़ा दे, तब वहाँ ‘अनुप्रास अलंकार' होता है।

    उदाहरणस्वरूपः

    1.
    ततोऽरुणपरिस्पन्दमन्दीकृतवपुः शशी ।
    दधे कामपरिक्षामकामिनीगण्डपाण्डुताम् ।। ।
    2.
    अपसारय घनसारं कुरु हारं दूर एवं किं कमलैः ।
    अलमलमानि! मृणालैरिति वदति दिवानिशंबात्य ।।
    3.
    यस्य न सविधै दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य।
    यस्य च सविधे दयिता दवदहनस्तुहिनदीधितिस्तस्य ।।

    अनुप्रास अलंकार के भेद

    1. छेकानुप्रास अलंकार
    2. वृत्यानुप्रास अलंकार
    3. लाटानुप्रास अलंकार
    4. अन्त्यानुप्रास अलंकार
    5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार

    अनुप्रास अलंकार

    अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – अनु + प्रास। यहाँ पर अनु का अर्थ है- बार -बार और प्रास का अर्थ होता है – वर्ण। जब किसी वर्ण की बार – बार आवर्ती हो तब जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते है। यह अलंकार शब्दालंकार के 6 भेदों में से एक हैं।

    अनुप्रास अलंकार की परिभाषा

    अनुप्रास अलंकार में किसी एक व्यंजन वर्ण की आवृत्ति होती है। आवृत्ति का अर्थ है दुहराना जैसे– 'तरनि-तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाये।" उपर्युक्त उदाहरणों में ‘त’ वर्ण की लगातार आवृत्ति है, इस कारण से इसमें अनुप्रास अलंकार है।

    अनुप्रास अलंकार का उदाहरण

    जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।
    विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।।

    अनुप्रास अलंकार के अन्य उदाहरण

    उदाहरण 1.

    लाली मेरे लाल की जित देखौं तित लाल।

    उदाहरण 2.

    विमलवाणी ने वीणा ली कमल कोमल कर में सप्रीत।

    उदाहरण 3.

    प्रतिभट कटक कटीले केते काटि-काटि कालिका-सी किलकि कलेऊ देत काल को।

    उदाहरण 4.

    सेस महेस दिनेस सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।

    उदाहरण 5.

    बंदऊँ गुरुपद पदुम परागा।
    सुरुचि सुवास सरस अनुरागा।

    उदाहरण 6.

    मुदित महीपति मंदिर आए।
    सेवक सचिव सुमंत बुलाए।

    उदाहरण 7.

    चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल-थल में।

    उदाहरण 8.

    प्रसाद के काव्य-कानन की काकली कहकहे लगाती नजर आती है।

    उदाहरण 9.

    लाली देखन मैं गई मैं भी हो गई लाल।।

    उदाहरण 10.

    संसार की समर स्थली में धीरता धारण करो।

    उदाहरण 11.

    जे न मित्र दुख होहिं दुखारी, तिन्हहि विलोकत पातक भारी।
    निज दुख गिरि सम रज करि जाना, मित्रक दुख रज मेरु समाना।।




    यमकालंकारः संस्कृत

    'अर्थे सत्यर्थभिन्नानां वर्णानां सा पुनः श्रुतिः' -जिस काव्य में एक शब्द कई बार आकर अलग-अलग अर्थ दे, वहाँ यमक अलंकार माना जाता है। इस अलंकार में और श्लेष अलंकार में अनेकार्थी शब्दों का प्रयोग हुआ करता है, इसलिए ऐसे शब्दों की जानकारी अपेक्षित है।

    उदाहरणस्वरूप :

    1.
    सन्नारीभरणोमायमाराध्य विधुशेखरम् ।।
    सन्नारीभरणोऽमायस्ततस्त्वं पृथिवीं जय ।।
    2.
    विनायमेनोनयताऽसुखादिना विना यमेनोनयता सुखादिना।
    महाजनोऽदीयत मानसादरं महाजनोदीयतमानसादरम् ।।
    3.
    अनन्तमहिमव्याप्तविश्वां वेधा न वेद याम् ।
    या च मातेव भजते प्रणते मानवे दयाम् ।।

    यमक अलंकार

    यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है। प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ हर बार अलग होता है। शब्द की दो बार आवृति होना वाक्य का यमक अलंकार के अंतर्गत आने के लिए आवश्यक है।

    यमक अलंकार की परिभाषा

    यमक शब्द का अर्थ होता है – दो, जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है। अर्थात जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है। यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के शब्दालंकार के भेदों में से एक हैं।

    यमक अलंकार का उदाहरण

    1.
    माला फेरत जग गया, फिरा न मन का फेर।
    कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।
    पद्य में ‘मनका’ शब्द का दो बार प्रयोग किया गया है। पहली बार ‘मनका’ का आशय माला के मोती से है और दूसरी बार ‘मनका’ से आशय है मन की भावनाओ से।
    2.
    कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय।
    या खाए बौरात नर या पा बौराय।।
    ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। प्रथम कनक का अर्थ ‘सोना’ और दुसरे कनक का अर्थ ‘धतूरा’ है।
    3.
    काली घटा का घमंड घटा।
    4.
    तीन बेर खाती थी वह तीन बेर खाती है।
    5.
    ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी।
    ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती है।।
    6.
    किसी सोच में हो विभोर साँसें कुछ ठंडी खिंची।
    फिर झट गुलकर दिया दिया को दोनों आँखें मिंची।।
    7.
    माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
    कर का मनका डारि दै, मन का मनका फेर।।
    8.
    केकी रव की नुपुर ध्वनि सुन,
    जगती जगती की मूक प्यास।
    9.
    बरजीते सर मैन के, ऐसे देखे मैंन
    हरिनी के नैनान ते हरिनी के ये नैन।
    10.
    तोपर वारौं उर बसी, सुन राधिके सुजान।
    तू मोहन के उर बसी ह्वे उरबसी सामान।
    12.
    जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।
    13.
    भर गया जी हनीफ़ जी जी कर,
    थक गए दिल के चाक सी सी कर।
    यों जिये जिस तरह उगे सब्ज़,
    रेग जारों में ओस पी पी कर।।
    14.
    कहै कवि बेनी बेनी ब्याल की चुराई लीनी
    15.
    ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी।
    ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती है।।


     

    श्लेषालंकारः - संस्कृत

    ‘वाच्यभेदेन भिन्ना यद् युगपदभाषणस्पृशः ।
    श्लिष्यन्ति शब्दाः श्लेषोऽसावक्षरादिभिरष्टधा ।।''
    ‘श्लेषः स वाक्ये एकस्मिन् यत्रानेकार्थता भवेत्'
    'श्लेष का अर्थ होता है—चिपकना । अर्थात् एकाधिक अर्थवाले शब्द को श्लिष्ट शब्द कहा जाता है। जब किसी वाक्य में ऐसे श्लिष्ट शब्दों का प्रयोग हो और या तो वह शब्द कई अर्थ लाए या फिर उसके कारण अर्थ में एकाधिकता आ जाए, तब श्लेषालंकार अपनी छटा बिखेरने लगता है।

    उदाहरणस्वरूपः

    1.
    अलङ्कारः शङ्का करनकपालं परिजनो
    विशीर्णाङ्गो भृङ्गो वसु च वृष एकोबहुवयाः ।
    अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति सर्वामिरगुरोः
    विधौ वक्रे मूर्ध्नि स्थितवति वयं के पुनरमी ।।
    इसमें ‘विधौ' पद में वर्णश्लेष है । 'विधि’ और ‘विधु' दो अलग-अलग शब्द हैं। विधि का अर्थ 'भाग्य' और विधु का ‘चन्द्रमा' होता है। इन दोनों का सप्तमी एकवचन में ‘विधौ' रूप ही बनता है।
    2.
    पृथुकार्तस्वर पात्रं भूषितनिःशेषपरिजनं देव!
    विलसत्करेणुगहनं सम्प्रति सममावयोः सदनम् ।।
    इसमें ‘पृथुकार्तस्वरपात्रं', भूषितनिःशेषपरिजनं' तथा 'विलसत्करेणुगहनं' में श्लेष है। इस बात को समझें—

    (क) पृथुकार्तस्वरपात्र

    1. याचक का घर बालकों का भूख से रोने का स्थान है।
    2. राजा का घर (महल) सोने के बड़े-बड़े बरतनों से युक्त है।

    (ख) भूषितनिःशेषपरिजनं

    1. सारे जन अलंकृत हैं (राजा के पक्ष में)
    2. सारे परिजन भूमि पर पड़े हैं।

    (ग) विलसत्करेणुगहनं

    1. झूमती हुई हथिनियों से युक्त महल (राजा के पक्ष में)
    2. चूहों के खोदे हुए बिलों की धूल से भरा घर (याचक के पक्ष में)

    कुछ अन्य उदाहरण :

    1.
    अहो केनेदृशी बुद्धिदारुणा तव निर्मिता।
    त्रिगुणा श्रूयते बुद्धिर्न तु दारुमयी क्वचित् ।।
    2.
    स्वयं च पल्लवाताम्रभा स्वकर विराजिता।
    प्रभातसन्ध्ये वा स्वापफललुब्धे हितप्रदा ।।

    श्लेष अलंकार की परिभाषा

    जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है। अर्थात श्लेष का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ, जब एक शब्द से हमें विभिन्न अर्थ मिलते हों तो उस समय श्लेष अलंकार होता है। अर्थात जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो वह श्लेष अलंकार कहलाता है।
    यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के शब्दालंकार के भेदों में से एक हैं।

    श्लेष अलंकार का उदाहरण

    1.
    जे रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय ।
    बारे उजियारो करै, बढ़े अंघेरो होय।
    रहीम जी ने दोहे के द्वारा दीये एवं कुपुत्र के चरित्र को एक जैसा दर्शाने की कोशिश की है। रहीम जी कहते हैं कि शुरू में दोनों ही उजाला करते हैं लेकिन बढ़ने पर अन्धेरा हो जाता है। इस उदाहरण में बढे शब्द से दो विभिन्न अर्थ निकल रहे हैं। दीपक के सन्दर्भ में बढ़ने का मतलब है बुझ जाना जिससे अन्धेरा हो जाता है। कुपुत्र के सन्दर्भ में बढ़ने से मतलब है बड़ा हो जाना।
    2.
    रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
    पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
    पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है- पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है. तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है।
    3.
    सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक
    जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक
    4.
    जो चाहो चटक न घटे,
    मैलो होय न मित्त राज राजस
    न छुवाइये नेह चीकने चित्त।।
    5.
    पी तुम्हारी मुख बास तरंग आज बौरे भौरे सहकार।
    6.
    रावण सर सरोज बनचारी।
    चलि रघुवीर सिलीमुख।
    7.
    रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
    पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
    8.
    सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक
    जो करते विप्लव, उन्हें, ‘हरि’ का है आतंक।
    9.
    पी तुम्हारी मुख बास तरंग आज बौरे भौरे सहकार।
    10.
    अलङ्कारः शङ्का करनकपालं परिजनो
    विशीर्णाङ्गो भृङ्गो वसु च वृष एकोबहुवयाः ।
    अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति सर्वामिरगुरोः
    विधौ वक्रे मूर्ध्नि स्थितवति वयं के पुनरमी ।।



     

    उपमालंकार: संस्कृत

    ‘उप' का अर्थ होता है—समीप से और ‘मा' का अर्थ है–तौलना या देखना । जब दो भिन्न वस्तुओं या व्यक्तियों में समान धर्म के कारण समानता दिखाई दे, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है। इसके मुख्यतया चार अंग होते हैं-
    1. उपमान : जिससे उपमा दी जाती है।
    2. उपमेय : जिसके लिए उपमा दी जाती है।
    3. साधारण धर्म : उपमान और उपमेय में समान गुण ।
    4. वाचकः -उपमान और उपमेय के बीच समानता दर्शाने के लिए प्रयुक्त सादृश्यवाचक शब्द।
    उदाहरण: अगर किसी के सौंदर्य के वर्णन में कहा जाय कि उसका पख चंद्रमा के समान सुंदर है तो इसमें मुख को उपमेय, चंद्रमा को उपमान, ‘संदर' को साधारण धर्म और ‘के समान' को वाचक माना जाएगा।

    कविकुलगुरु कालिदास को उपमासम्राट् कहा जाता है। यानी कालिदास ने उपमा का। प्रयोग जमकर और अत्यंत रुचिकर किया है। रीतिकारों ने एक मत से स्वीकार करते हुए लिखा है-
    ‘उपमा कालिदासस्य भावेऽर्थगौरवम् ।।
    दण्डिनः पदलालित्यं माघेसन्ति त्रयोगुणाः ।।

    इस अलंकार के कुछ उदाहरण देखें-

    1.
    स्वप्नेऽपि समरेषु त्वां विजयश्रीनिंमुञ्चति ।
    प्रभावप्रभवं कान्तं स्वाधीनपतिका यथा ।।
    2.
    गाम्भीर्यगरिमा तस्य सत्यं गङ्गाभुजङ्गवत् ।
    दुरालोकः स समरे निदाधाम्बररत्नवत् ।।
    3.
    आकृष्ट करवालोऽसौ सम्पराये परिभ्रमन् ।
    प्रत्यर्थिसेनया दृष्टः कृतान्तेन समः प्रभुः ।।
    4.
    करवालइवाचारस्तस्य वागमृतोपमा ।
    विषकल्पं मनो वेत्सि यदि जीवसि तत्सखे ।।
    5.
    ततः कुमुदनाथेन कामिनीगण्डपाण्डुना।
    नेत्रानन्देन चन्द्रेण माहेन्द्रीदिगलङ्कृता ।।


    उपमा अलंकार 

    उपमा शब्द का अर्थ होता है – तुलना।, जब किसी व्यक्ति या वस्तु की तुलना किसी दूसरे यक्ति या वस्तु से की जाए वहाँ पर उपमा अलंकार होता है। अर्थात जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है। यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेद में से एक हैं।

    उपमा अलंकार के अंग

    उपमा अलंकार के निम्न चार अंग होते हैं - उपमेय, उपमान, वाचक शब्द, साधारण धर्म।

    उपमेय

    उपमेय का अर्थ होता है – उपमा देने के योग्य। अगर जिस वस्तु की समानता किसी दूसरी वस्तु से की जाये वहाँ पर उपमेय होता है।

    उपमान

    उपमेय की उपमा जिससे दी जाती है उसे उपमान कहते हैं। अथार्त उपमेय की जिस के साथ समानता बताई जाती है उसे उपमान कहते हैं।

    वाचक शब्द

    जब उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाती है तब जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है उसे वाचक शब्द कहते हैं।

    साधारण धर्म

    दो वस्तुओं के बीच समानता दिखाने के लिए जब किसी ऐसे गुण या धर्म की मदद ली जाती है जो दोनों में वर्तमान स्थिति में हो उसी गुण या धर्म को साधारण धर्म कहते हैं।

    उपमा अलंकार के भेद

    उपमा अलंकार के मुख्य रूप से दो भेद होते है। जो इस प्रकार हैं- भेद पूर्णोपमा अलंकार, लुप्तोपमा अलंकार।

    पूर्णोपमा अलंकार

    इसमें उपमा के सभी अंग होते हैं – उपमेय , उपमान , वाचक शब्द , साधारण धर्म आदि अंग होते हैं वहाँ पर पूर्णोपमा अलंकार होता है। जैसे -
    सागर -सा गंभीर ह्रदय हो ,
    गिरी -सा ऊँचा हो जिसका मन।

    लुप्तोपमा अलंकार

    इसमें उपमा के चारों अगों में से यदि एक या दो का या फिर तीन का न होना पाया जाए वहाँ पर लुप्तोपमा अलंकार होता है। जैसे -
    कल्पना सी अतिशय कोमल।
    जैसा हम देख सकते हैं कि इसमें उपमेय नहीं है तो इसलिए यह लुप्तोपमा का उदहारण है।

    उपमा अलंकार के उदाहरण

    1.
    हरि पद कोमल कमल
    इस उदाहरण में हरि के पैरों कि तुलना कमल के फूल से की गयी है। हरि के चरणों को कमल के फूल के जैसे कोमल बताया गया है।
    2.
    कर कमल-सा कोमल हैं
    उदाहरण में कर-उपमेय है, कमल-उपमान है, कोमल-साधारण धर्म है एवं सा-वाचक शब्द है। जब किन्ही दो वस्तुओं की उनके एक सामान धर्म की वजह से तुलना की जाती है तब वहां उपमा अलंकार होता है।
    3.
    पीपर पात सरिस मन ड़ोला।
    4.
    मुख चन्द्रमा-सा सुन्दर है।
    5.
    नील गगन-सा शांत हृदय था रो रहा।

    Examples of Upama Alankar

    6.
    नील गगन सा शांत हृदय था रो रहा।
    7.
    पीपर पात सरिस मन ड़ोला।
    8.
    कर कमल सा कोमल हैं
    9.
    मुख चन्द्रमा सा सुन्दर है।
    10.
    पीपर पात सरिस मन ड़ोला।


    रूपकालंकारः संस्कृत

    'तद्रूपकमभेदोयउपमानोपमेययोः अति साम्यादनपहनुतभेदयोरभेदः'- जब उपमेय पर उपमान का निषेध-रहित आरोप करते हैं, तब रूपक अलंकार होता है। उपमेय में उपमान के आरोप का अर्थ है दोनों में अभिन्नता या अभेद दिखाना। इस आरोप में निषेध नहीं होता है। जैसे-
    “बीती विभावरी जाग री!
    अम्बर पनघट में डुबो रही
    तारा घट ऊषा नागरी।''
    स्पष्टीकरण- यहाँ, ऊषा में नागरी का, अम्बर में पनघट का और तारा में घट का निषेध-रहित आरोप हुआ है।

    संस्कृत साहित्यकारों द्वारा दिए गए उदाहरणों को देखें-

    1.
    ज्योत्स्नाभस्मच्छरणधवला बिभ्रती ताराकास्थी
    न्यन्तद्धनिव्यसनरसिका रात्रिकापालिकीयम् ।
    द्वीपाद द्वीपं भ्रमति दधती चन्द्रमुद्राकपाले
    न्यस्त सिद्धाञ्जनपरिमलं लाञ्छनस्यच्छलेन ।।
    स्पष्टीकरण- इसमें ‘रात्रि' के ऊपर कापालिकी का आरोप है।
    2.
    यस्य रणान्तः पुरेकरे कुर्वतो मण्डलाग्रंलताम् ।
    रससम्मुख्यपि सहसा पराङ्मुखी भवति रिपुसेना ।।
    3.
    सौन्दर्यस्य तरङ्गिणी तरुणिमोत्कर्षस्य हर्षोदगमः
    कान्तेः कार्मणकर्मनर्मरहसमुल्लासनावासभूः ।
    विद्यावक्रगिरां विधेरनविधिप्रावीण्यसाक्षाक्रिया

    बाणाः पञ्चशिलीमुखस्य ललनाचूडामणिः सा प्रिया ।। 



    रूपक अलंकार

    जहाँ पर उपमेय और उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे वहाँ रूपक अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच के भेद को समाप्त करके उसे एक कर दिया जाता है वहाँ पर रूपक अलंकार होता है। दूसरे शब्दों में जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में कोई अंतर न दिखाई दे तब वह रूपक अलंकार कहलाता है। यह अलंकार, Hindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    रूपक अलंकार के उदाहरण

    1.
    पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
    स्पष्टीकरण- उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है। 2.
    वन शारदी चन्द्रिका-चादर ओढ़े।
    स्पष्टीकरण-चाँद की रोशनी को चादर के समान ना बताकर चादर ही बता दिया गया है। इस वाक्य में उपमेय – ‘चन्द्रिका’ है एवं उपमान – ‘चादर’ है। 3.
    गोपी पद-पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे।
    स्पष्टीकरण- उदाहरण में पैरों को ही कमल बता दिया गया है। ‘पैरों’ – उपमेय पर ‘कमल’ – उपमान का आरोप है। उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दिखाई जा रही है। 4.
    बीती विभावरी जागरी !
    अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घाट उषा नगरी।
    5.
    प्रभात यौवन है वक्ष सर में कमल भी विकसित हुआ है कैसा।
    स्पष्टीकरण-यहाँ यौवन में प्रभात का वक्ष में सर का निषेध रहित आरोप हुआ है। यहां हम देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है।

    6.

    उदित उदयगिरी-मंच पर, रघुवर बाल-पतंग।
    विकसे संत सरोज सब हर्षे लोचन भंग।
    7.
    शशि-मुख पर घूँघट डाले
    अंचल में दीप छिपाये।
    8.
    मन-सागर, मनसा लहरि, बूड़े-बहे अनेक।
    9.
    विषय-वारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।
    10.
    ‘अपलक नभ नील नयन विशाल’
    11.
    सिर झुका तूने नीयति की मान ली यह बात।
    स्वयं ही मुरझा गया तेरा हृदय-जलजात।


     

    दृष्टांतालंकारः संस्कृत

    ‘दृष्टांतः पुनरेतेषां सर्वेषां प्रतिबिम्बनम्' - अर्थात् उपमान, उपमेय, उनके विशेषण और साधारण धर्म का भिन्न होते हुए भी औपम्य के प्रतिपादनार्थ उपमान वाक्य तथा उपमेय वाक्य में पृथगुपादानरूप बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होने पर दृष्टांत अलंकार होता है।

    उदाहरणस्वरूपः

    1.
    त्वयि दृष्ट एव तस्या निर्वाति मनो मनोभवज्वलितम् ।।
    आलोक ही हिमांशोर्विकसति कुसुमं कुमुद्वत्याः ।
    स्पष्टीकरण– यहाँ नायक -चन्द्रमा, नायिका -कुमुदिनी और मन -कुसुम का मनोभव सन्तप्तत्व तथा सूर्यसंतप्तत्व का निर्वाण और विकास का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव होने के कारण दृष्टांत अलंकार हुआ है।
    2.
    तवाहवे साहसकर्मशर्मणः करं कृपाणान्तिकमानिनीषतः ।।
    मटाः परेषां विशरारूतामगः दधत्यवातेस्थिरतां हि पासवः ।
    स्पष्टीकरण– यहाँ ‘धूल' तथा 'शत्र सैनिकों का और पलायन एवं अस्थिरत्व का बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव है।


    दृष्टान्त अलंकार 

    परिभाषा–जहाँ उपमेय और उपमान के साधारण धर्म में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दिखाया जाए, वहाँ दृष्टान्त अलंकार होता है। या  जहाँ दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्यों में बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव होता हो वहाँ पर दृष्टान्त अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय रूप में कहीं गई बात से मिलती -जुलती बात उपमान रूप में दुसरे वाक्य में होती है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है।
    यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    दृष्टान्त अलंकार के उदाहरण

    1.
    एक म्यान में दो तलवारें, कभी नहीं रह सकती हैं।
    किसी और पर प्रेम नारियाँ, पति का क्या सह सकती है।।
    2.
    पापी मनुज भी आज मुख से राम-नाम निकालते।
    देखो भयंकर भेड़िये भी आज आँसू ढालते।
    स्पष्टीकरण– यहाँ पापी मनुष्य का प्रतिबिम्ब भेड़िये में तथा राम-नाम का प्रतिबिम्ब आँसू से पड़ रहा

    Example of Drashtant Alankar

    3.
    एक म्यान में दो तलवारें,
    कभी नहीं रह सकती है।
    किसी और पर प्रेम नारियाँ,
    पति का क्या सह सकती है।।
    स्पष्टीकरण– इस अलंकार में एक म्यान दो तलवारों का रहना वैसे ही असंभव है जैसा कि एक पति का दो नारियों पर अनुरक्त रहना। अतः यहाँ बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव दृष्टिगत हो रहा है।

     

    सन्देहालंकारः संस्कृत

    'ससन्देहस्तु भेदोक्तौ तदनुक्तौ च संशयः' - उपमेय में जब उपमान का संशय हो, तब संदेह अलंकार होता है। नीचे लिखे उदाहरणों को देखें-

    1.
    जय मार्तण्डः किंम? स खलु तुरगैः सप्तभिरितः
    कृशानुः किं? सर्वाः प्रसरति दिशौ नैष नियतम् ।
    कृतान्तः किं? साक्षान्महिषवहनोऽसाविति चिरं ।
    समालोक्याजौ त्वां विधदति विकल्पान् प्रतिभटाः ।।
    2.
    इन्दुः किं क्व कलङ्कः सरसिजमेतत्किमम्बु कुत्र गतम् ।
    ललित सविलासवचनैर्मुखमिति हरिणाक्षि! निश्चित परतः ।।


    सन्देह अलंकार

    परिभाषा: रूप-रंग, आदि के साद्रश्य से जहां उपमेय में उपमान का संशय बना रहे या उपमेय के लिए दिए गए उपमानों में संशय रहे, वहाँ सन्देह अलंकार होता है।

    जब उपमेय और उपमान में समता देखकर यह निश्चय नहीं हो पाता कि उपमान वास्तव में उपमेय है या नहीं। जब यह दुविधा बनती है , तब संदेह अलंकार होता है अथार्त जहाँ पर किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर संशय बना रहे वहाँ संदेह अलंकार होता है। यह अलंकार उभयालंकार का भी एक अंग है। यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    सन्देह अलंकार के उदाहरण

    1.
    सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है।
    सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।
    स्पष्टीकरण- साड़ी के बीच नारी है या नारी के बीच साडी इसका निश्चय नहीं हो पाने के कारण सन्देह अलंकार है।
    2.
    यह काया है या शेष उसी की छाया,
    क्षण भर उनकी कुछ नहीं समझ में आया।



     

    अतिशयोक्ति अलंकारः

    'उपमानेनान्तर्निगीर्णस्योपमेयस्य यदध्यवसानं सैका' - इस अलंकार में लोक सीमा से बढ़कर तारीफ या निंदा की जाती है।

    उदाहरण:

    1.
    कमलमनम्भसि कमले च कुवलये तानि कनकलतिकायाम् ।।
    सा च सुकुमारसुभगेत्युत्पातपरम्परा केयम् ।।।
    स्पष्टीकरण– यहाँ उपमानरूप कमलादि के द्वारा उपमेयभूत मुखादि का निगरण करककमलादि रूप से अभिन्नतया निश्चित किए गए हैं।
    2.
    अन्यत् सौकुमार्यमन्यैव च कापि वर्तनच्छाया ।
    श्यामा सामान्यप्रजापतेः रेखैव च न भवति ।।
    स्पष्टीकरण– यहाँ लोकप्रसिद्ध सौन्दर्य तथा शरीर कान्ति का ही कवि ने 'अन्य' अर्थात् अलौकिक लोकोत्तर रूप वर्णन किया है।


    अतिश्योक्ति अलंकार 

    परिभाषा- जहाँ किसी वस्तु का इतना बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया जाए कि सामान्य लोक सीमा का उल्लंघन हो जाए वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। अर्थात जब किसी व्यक्ति या वस्तु का वर्णन करने में लोक समाज की सीमा या मर्यादा टूट जाये उसे अतिश्योक्ति अलंकार कहते हैं।

    यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    अतिश्योक्ति अलंकार के उदाहरण 

    1.
    हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि।
    सगरी लंका जल गई , गये निसाचर भागि।
    स्पष्टीकरण– इस उदाहरण में कहा गया है कि अभी हनुमान की पूंछ में आग लगने से पहले ही पूरी लंका जलकर खाख हो गयी और सभी राक्षस भाग खड़े हुए। ये बात बिलकुल असंभव है। अतः यह अतिशयोक्ति के अंतर्गत आएगा।
    2.
    लहरें व्योम चूमती उठतीं ।
    स्पष्टीकरण– यहाँ समुद्र की लहरों को आकाश चूमते हुए कहकर उनकी अतिशय ऊँचाई का उल्लेख अतिशयोक्ति के माध्यम से किया गया है।
    3.
    आगे नदियां पड़ी अपार
    घोडा कैसे उतरे पार।
    राणा ने सोचा इस पार
    तब तक चेतक था उस पार।
    4.
    धनुष उठाया ज्यों ही उसने,
    और चढ़ाया उस पर बाण
    धरा–सिन्धु नभ काँपे सहसा,
    विकल हुए जीवों के प्राण।
    5.
    भूप सहस दस एकहिं बारा
    लगे उठावन टरत न टारा।।
    6.
    परवल पाक, फाट हिय गोहूँ।
    8.
    चंचला स्नान कर आये,
    चन्द्रिका पर्व में जैसे
    उस पावन तन की शोभा
    आलोक मधुर थी ऐसे।।
    9.
    देख लो साकेत नगरी है यही,
    स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही।
    10.
    मैं बरजी कैबार तू, इतकत लेती करौंट।
    पंखुरी लगे गुलाब की, परि है गात खरौंट।
    11.
    बाँधा था विधु को किसने इन काली ज़ंजीरों में,
    मणिवाले फणियों का मुख क्यों भरा हुआ है हीरों से।

    अतिशयोक्ति अलंकार के भेद

    (i) रूपकातिशयोक्ति, (ii) सम्बन्धातिशयोक्ति,(iii) भेदकातिशयोक्ति, (iv) चपलातिशयोक्ति, (v) अति- क्रमातिशयोक्ति, (vi) असम्बन्धातिशयोक्ति।


     

    दीपकालंकारः संस्कृत

    जिस अलंकार में उपमान तथा उपमेय का क्रियादिरूप धर्म जो एक ही बार ग्रहण किया जाता है, वह एक जगह स्थित भी समस्त वाक्य का दीपक होने से 'दीपकालंकार होता है।
    जैसे - दरवाजे की देहलीज पर रखा दीपक कमरे के बाहर और भीतर दोनों जगह प्रकाश करता है।

    उदाहरणस्वरूप :

    1
    कपणानां धनं नागानां फणमणिः केसराः सिंहानाम् ।
    कुलबालिकानां स्तनाः कुतः स्पृश्यन्तेऽमृतानाम् ।।
    2.
    स्वियति कूणति वेल्लति विचलति निमिषति विलोकयति तिर्यक ।।
    अन्तर्नन्दति चुम्बितुमिच्छति नवपरिणया वधूः शयने ।।।
    स्पष्टीकरण - प्रथम उदाहरण में एक ही क्रियापद ‘स्पृश्यन्ते' है और उसके साथ धन, फणमणि, केसर और स्तनादि अनेक कारकों का सम्बन्ध स्थापित हुआ है।

    दीपक अलंकार

    परिभाषा- जहाँ पर प्रस्तुत और अप्रस्तुत का एक ही धर्म स्थापित किया जाता है वहाँ पर दीपक अलंकार होता है। यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    दीपक अलंकार के उदाहरण

    1.
    चंचल निशि उदवस रहें, करत प्रात वसिराज।
    अरविंदन में इंदिरा, सुन्दरि नैनन लाज।।




     

    व्यतिरेकालंकारः संस्कृत

    "उपमानाद् यदन्यस्य व्यतिरेकः स एवं सः । अन्यस्योपमेयस्य | व्यतिरेकः आधिक्यम् ।" - अर्थात उपमान से अन्य यानी उपमेय का जो (विशेषण अतिरेकः व्यतिरेकः) आधिक्य का वर्णन ही व्यतिरेकालंकार है।

    उदाहरणस्वरूप

    क्षीणः क्षीणोऽपि शशि भूयो भूयोऽभिवर्धते सत्यम् ।
    विरम प्रसीद सुन्दरि! यौवनमनिवर्ति यातं तु ।
    स्पष्टीकरण- यहाँ ‘क्षीणः क्षीणोऽपि शशी' इत्यादि में उपमान (चन्द्रमा) का उपमेय (यौवन) से आधिक्य वर्णित है। यहाँ यौवनगत अस्थैर्य का आधिक्य ही कवि को विवक्षित है।


    व्यतिरेक अलंकार 

    परिभाषा: जहाँ कारण बताते हुए उपमेय की श्रेष्ठता उपमान से बताई जाए वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है। व्यतिरेक का शाब्दिक अर्थ होता है आधिक्य। व्यतिरेक में कारण का होना जरुरी है। अत: जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ पर व्यतिरेक अलंकार होता है।
    यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    व्यतिरेक अलंकार के उदाहरण

    का सरबरि तेहि देउँ मयंकू।
    चाँद कलंकी वह निकलंकू।।
    स्पष्टीकरण- नायिका के मुख की समता चन्द्रमा से नहीं दी जा सकती, क्योंकि चन्द्रमा में तो कलंक हैं, जबकि वह मुख तो निष्कलंक हैं। कारण सहित उपमेय की श्रेष्ठता बताने से यहाँ व्यतिरेक अलंकार है।



     

    विभावनालंकारः संस्कृत

    "क्रियायाः प्रतिषेधेऽपि फलव्यक्तिर्विभावना।
    हेतुरूप क्रियाया निषेधेऽपि तत्फलप्रकाशनं विभावना।"
    हेतु क्रिया (कारण) का निषेध होने पर भी फल की उत्पत्ति विभावनालंकार है।

    उदाहरणस्वरूप :

    कसमितलताभिरहताऽप्यधत रुजमलिकलैग्दष्टापि।
    परिवर्तते स्म नलिनीलहरीभिरलोलिताप्यघूर्णतसा ।
    स्पष्टीकरण– यहाँ लताओं की चोट पीड़ा का हेतु हो सकती थी, भौरे का काटना तड़पने और कमलिनी की लहरों के चक्कर में फंसना चक्कर आने का कारण हो सकता था; परंतु उन कारणों का निषेध करने पर भी कार्य का प्रकाशन किया गया है।


    विभावना अलंकार

    परिभाषा - जहाँ पर कारण के न होते हुए भी कार्य का हुआ जाना पाया जाए वहाँ पर विभावना अलंकार होता है। अर्थात हेतु क्रिया (कारण) का निषेध होने पर भी फल की उत्पत्ति विभावनालंकार है।
    यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    विभावना अलंकार के उदाहरण

    बिनु पग चलै सुनै बिनु काना।
    कर बिनु कर्म करै विधि नाना।
    आनन रहित सकल रस भोगी।
    बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।




     

    विशेषोक्ति अलंकारः संस्कृत

    ‘‘विशेषोक्तिरखणेषु कारणेषु फलावचः,
    संपूर्ण कारणों के होने पर भी फल का न कहना विशेषोक्ति है।

    उदाहरणस्वरूप :

    निद्रानिवृत्तावुदिते रत्ने सखीजने द्वारपदं पराप्ते,
    श्लथीकृताश्लेषरसे भुजङ्गे चचाल नालिङ्गनतोऽङ्गना सा ।।
    स्पष्टीकरण– यहाँ निद्रानिवृत्ति, सूर्य का उदय होना तथा सखियों का द्वार पर आना आलिंगन परित्याग करने के कारण उपस्थित है, फिर भी नायिका आलिंगन का त्याग नहीं कर पा रही है।

    अन्य उदाहरण : 

    1.
    कर्पूर इव दग्धोऽपि शक्तिमान् यो जने जने ।
    नमोऽस्त्ववार्यवीर्याय तस्मै मकरकेतवे ।।
    2.
    सः एकस्त्रीणि जयति जगन्ति कुसुमायुधः ।
    हरताऽपि तनुं यस्य शम्भुना न वलं हृतम् ।।


    विशेषोक्ति अलंकार 

    परिभाषा: संपूर्ण कारणों के होने पर भी फल का न कहना विशेषोक्ति है। अर्थात काव्य में जहाँ कार्य सिद्धि के समस्त कारणों के विद्यमान रहते हुए भी कार्य न हो वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है।
    यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    विशेषोक्ति अलंकार के उदाहरण

    1.
    नेह न नैनन को कछु उपजी बड़ी बलाय।
    नीर भरे नित प्रति रहे तउ न प्यास बुझाय।।
    2.
    मूरख ह्रदय न चेत , जो गुरु मिलहिं बिरंचि सम,
    फूलहि फलहि न बेत , जदपि सुधा बरसहिं जलद








     

    विरोधाभासालंकारः संस्कृत

    'विरोधः सोऽविरोधेऽपि विरुद्धत्वेन यद्वचः' - वास्तव में विरोध न होने पर भी विरुद्ध रूप से जो वर्णन करना यह विरोधाभास होता है।

    उदाहरणस्वरूप :

    1.
    गिरयोऽप्यनुन्नतियुजो मरुदप्यचलोऽब्धयोऽप्यगम्भीराः ।।
    विश्वम्भराऽप्यतिलघर्नरनाथ! तवान्तिके नियतम् ।।
    स्पष्टीकरण- यहाँ ‘गिरि आदि जातिवाचक शब्दों का जो अनुन्नतत्वादि वर्णित है, उनमें जाति का गुण के साथ विरोध दिखाया गया है।
    2.
    सततं मुसलासक्ता बहुतरग्रहकर्मघटनया नृपते!
    द्विजपलीनां कठिनाः सति भवति कराः सरोजसुकुमाराः ।।
    3.
    पेशलमपि खलवचनं दहतितरां मानसं सतत्त्वविदाम् ।।
    परुषमपि सुजन वाक्यं मलयजरसवत् प्रमोदयति ।।


    विरोधाभाष अलंकार 

    परिभाषा– जहाँ वास्तविक विरोध न होकर केवल विरोध का आभास हो, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। अर्थात जब किसी वस्तु का वर्णन करने पर विरोध न होते हुए भी विरोध का आभाष हो वहाँ पर विरोधाभास अलंकार होता है।
    यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    विरोधाभाष अलंकार के उदाहरण

    1.
    या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोय। । ज्यों-ज्यों बूड़े स्याम रँग त्यों-त्यों उज्ज्वल होय।।
    स्पष्टीकरण- यहाँ श्याम रंग में डूबने पर चित्त के उज्ज्वल होने की बात कहकर विरोध का कथन है, किन्तु श्याम रंग का अभिप्राय कृष्ण (ईश्वर) के प्रेम से लेने पर अर्थ होगा कि जैसे जैसे चित्त ईश्वर के अनुराग में डूबता है, वैसे-वैसे चित्त और भी अधिक निर्मल होता जाता है। यहाँ विरोध का आभास होने से विरोधाभास अलंकार है।
    2.
    आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
    शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।


     

    काव्यलिङ्गालङ्कारः संस्कृत

    'काव्यलिङ्गहेतोर्वाक्यपदार्थता' - हेतु का वाक्यार्थ अथवा पदार्थ रूप में कथन करना ही काव्यलिङ्गालङ्कार है। उदाहरणस्वरूपः

    2.
    वपुः प्रादुर्भावादनुमितमिदं जन्मनि पुरा
    परारे! न प्रायः क्वचिदपि भवन्तं प्रणतवान् ।
    नमन्मुक्तः सम्प्रत्यहमतनुरग्रेऽप्यनतिभाक्
    महेश! क्षन्तव्यं तदिदमपराधद्वयमपि ।।
    स्पष्टीकरण- यहाँ ‘पुरा जन्मनि भवन्तं न प्रणतवान्' और 'अग्रेऽप्यनतिभाक्' इन वाक्यों का अर्थ अपराधद्वय का हेतु है।


    काव्यलिंग अलंकार

    परिभाषा: हेतु का वाक्यार्थ अथवा पदार्थ रूप में कथन करना ही काव्यलिङ्गालङ्कार है। अर्थात जहाँ पर किसी युक्ति से समर्थित की गयी बात को काव्यलिंग अलंकार कहते हैं अथार्त जहाँ पर किसी बात के समर्थन में कोई -न -कोई युक्ति या कारण जरुर दिया जाता है।
    यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण(Hindi Grammar) के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    काव्यलिंग अलंकार के उदाहरण

    1.
    कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
    उहि खाय बौरात नर, इहि पाए बौराए।।




     

    कारणमाला अलंकार (कारणमालालंकारः)

    परिभाषा: 'यथोत्तरं चेत्पूर्वस्य पूर्वस्यार्थस्य हेतुता। तदा कारणमाला स्यात्' - जहाँ अगले-अगले अर्थ के पहले-पहले अर्थ हेतु हों, वहाँ कारणमालालंकार होता है। (यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण(Hindi Grammar) के Alankar के भेदों में से एक हैं।)

    उदाहरणस्वरूप :

    1.
    जितेन्द्रियत्वं विनयस्य कारणं गुणप्रकर्षों विनयादवाप्यते ।।
    गुणप्रकर्षण जनोऽनुरज्यते जनानुरागप्रभवा हि सम्पदः ।।
    2.
    विदया ददाति विनयं विनयात् आयाति पात्रताम् ।
    पात्रत्वात् धनम् आप्नोति धनाधर्मः सुखम् ।।


     

    पर्याय अलंकार (पर्यायालंकार)

    परिभाषा: "एक क्रमेणानेकस्मिन् पर्यायः" - एक क्रम से अनेक में पर्यायालंकार होता है। यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण (Hindi Grammar) के अलंकार के भेदों में से एक हैं।

    उदाहरणस्वरूप : (पर्याय अलंकार - पर्यायालंकार के उदाहरण)

    बिम्वोष्ठ एव रागस्ते तन्वि! पूर्वमदश्यत ।।
    अधुना हृदयेऽप्येष मृगशावाक्षिः लक्ष्यते ।।
    स्पष्टीकरण- यहाँ राग का वस्तुतः भेद होने पर भी औपचारिक एकत्व मान लेने से एकत्व का विरोध नहीं होता।


     

    स्वभावोक्ति अलंकारः संस्कृत

    "स्वभावोक्तिस्तडिम्भादेः स्वक्रियारूप वर्णनम् " - पालकादि की अपनी स्वाभाविक क्रिया अथवा रूप का वर्णन ही स्वभावोक्ति अलंकार है।

    उदाहरणस्वरूप :

    2.
    पश्चादंम्री पसार्य त्रिकनतिविततं द्राधयित्वाङ्गमुच्चः
    रासज्यामुग्नकण्ठो मुखमरसि सटां धूलिधम्रा विधूय ।
    घासाग्रासाभिलाषादनवरतचलपोथतण्डस्तरङ्गो
    मन्दं शब्दायमानो विलिखति शयनादुत्थितः मांखुरेण ।।
    स्पष्टीकरण- यहाँ घोड़े की स्वाभाविक क्रियाओं के वर्णन से स्वभावोक्ति अलंकार की छटा दिखती है।


    स्वभावोक्ति अलंकार 

    परिभाषा- बालकादि की अपनी स्वाभाविक क्रिया अथवा रूप का वर्णन ही स्वभावोक्ति अलंकार है। अर्थात किसी वस्तु के स्वाभाविक वर्णन को स्वभावोक्ति अलंकार कहते हैं। यह अलंकार, हिन्दी व्याकरण(Hindi Grammar) के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    स्वभावोक्ति अलंकार के उदाहरण

    1.
    सीस मुकुट कटी काछनी , कर मुरली उर माल।
    इहि बानिक मो मन बसौ , सदा बिहारीलाल।।
    2.
    चितवनी भोरे भाय की गोरे मुख मुसकानी।
    लगनी लटकी आलीर गरे चित खटकती नित आनी।।
    स्पष्टीकरण- नायक नायिका की सखी से कहता है कि उस नायिका के भोलेपन की चितवन गोरे मुख की हँसी और वह लटक लटक कर सखी के गले लिपटना ये चेष्टाएँ नित्य मेरे चित्त में खटका करती रहती हैं, यहाँ नायिका के चित्रित आँगिक व्यापारों में सभी स्वाभाविक हैं,  इसमें वस्तु दृष्य अथवा चेस्टाओं का स्वाभाविक अंकन हुआ है।



     

    समासोक्ति अलंकार 

    ‘परोक्तिभेदकैः श्लिष्टैः समासोक्तिः' - श्लेषयुक्त विशेषणों के द्वारा दो अर्थों का संक्षेप होने से समासोक्ति अलंकार होता है। यह अलंकारHindi Grammar के Alankar के भेदों में से एक हैं।

    समासोक्ति अलंकार के उदाहरण

    लब्ध्वा तव बाहुस्पर्श यस्याः सो कोऽप्युल्लासः ।
    जय लक्ष्मीस्तव विरहे न खलुज्ज्वला दुर्बला ननु सा ।।
    स्पष्टीकरण- यहाँ केवल ‘जय लक्ष्मी' शब्द कान्ता का वाचक है। अर्थात् जय लक्ष्मी शब्द नायिका का बोधक है।

    Post a Comment

    0 Comments
    * Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.